समंजसत्व: Difference between revisions
From जैनकोष
Bhumi Doshi (talk | contribs) No edit summary |
(Imported from text file) |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<div class="HindiText"> <p> राजा का एक गुण । यह गुण जिस राजा में होता है वह दुष्ट पुरुषों का निग्रह और शिष्ट पुरुषों का अनुग्रह करता है । पक्षपात रहित होकर सबको समान मानता है । निग्रह करने योग्य शत्रु और मित्र दोनों का समान रूप से निग्रह करता है और इस प्रकार इष्ट और दुष्ट दोनों को निरपराधी बनाने को इच्छा करता है । मध्यस्थ रहना उसे इष्ट लगता है । <span class="GRef"> महापुराण 38.281, 42.198-201 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> राजा का एक गुण । यह गुण जिस राजा में होता है वह दुष्ट पुरुषों का निग्रह और शिष्ट पुरुषों का अनुग्रह करता है । पक्षपात रहित होकर सबको समान मानता है । निग्रह करने योग्य शत्रु और मित्र दोनों का समान रूप से निग्रह करता है और इस प्रकार इष्ट और दुष्ट दोनों को निरपराधी बनाने को इच्छा करता है । मध्यस्थ रहना उसे इष्ट लगता है । <span class="GRef"> महापुराण 38.281, 42.198-201 </span></p> | ||
</div> | </div> | ||
Line 10: | Line 10: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: स]] | [[Category: स]] | ||
[[Category: | [[Category: प्रथमानुयोग]] |
Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
राजा का एक गुण । यह गुण जिस राजा में होता है वह दुष्ट पुरुषों का निग्रह और शिष्ट पुरुषों का अनुग्रह करता है । पक्षपात रहित होकर सबको समान मानता है । निग्रह करने योग्य शत्रु और मित्र दोनों का समान रूप से निग्रह करता है और इस प्रकार इष्ट और दुष्ट दोनों को निरपराधी बनाने को इच्छा करता है । मध्यस्थ रहना उसे इष्ट लगता है । महापुराण 38.281, 42.198-201