भवि कीजे हो आतमसँभार, राग दोष परिनाम डार: Difference between revisions
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भवि कीजे हो आतमसँभार, राग दोष परिनाम डार
कौन पुरुष तुम कौन नाम, कौन ठौर करो कौन काम।।भवि. ।।१ ।।
समय समय में बंध होय, तू निचिन्त न वारै कोय।।भवि. ।।२।।
जब ज्ञान पवन मन एक होय, `द्यानत' सुख अनुभवै सोय।।भवि. ।।३ ।।