Category:द्यानतरायजी
From जैनकोष
कविवर द्यानतरायजी :- सत्रहवीं शताब्दी के हिन्दी प्रमुख जैन कवियों में कविवर द्यानतराय प्रमुख थे । आपका जन्म वि. सं. १७३३ (सन् १९७६)में आगरा में हुआ । आपके पूर्वज लालपुर से आकर आगरा में निवास करने लगे थे । आपके पितामह का नाम वीरदास था जो अग्रवाल जाति के गोयल गोत्रीय थे । आपके पिता का नाम श्यामदास था । उस समय आगरा में पं.बनारसीदासजी का अच्छा प्रभाव था और परम्परागत आध्यात्मिक शैली प्रभावशील थीं । आपने पण्डित मानसिंहजी द्वारा संचालित धर्मशैली से भरपूर लाभ उठाया । आप पर पण्डित मानसिंहजी के अतिरिक्त पण्डित बिहारीदासजी के उपदेशों का भी प्रभाव था जिसके कारण आपकी जैनधर्म के प्रति अगाध श्रद्धा दृढ़ हुई । आपने अपना सारा जीवन अध्यात्म की सेवा में लगा दिया । आपकी रचनाओ में पूजा-पाठ, स्तोत्र तथा भजन प्रमुखता से हैं । आपके आध्यात्मिक भजन `द्यानत विलास' के नाम से संग्रहीत हैं । आपका निधन वि.सं. १७८५ (सन् १७२८ ई.) में हुआ ।
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आ
- आतम अनुभव कीजै हो
- आतम अनुभव सार हो, अब जिय सार हो, प्राणी
- आतम काज सँवारिये, तजि विषय किलोलैं
- आतम जान रे जान रे जान
- आतम जाना, मैं जाना ज्ञानसरूप
- आतम जानो रे भाई!
- आतम महबूब यार, आतम महबूब
- आतमज्ञान लखैं सुख होइ
- आतमरूप अनूपम है, घटमाहिं विराजै हो
- आतमरूप सुहावना, कोई जानै रे भाई ।
- आपा प्रभु जाना मैं जाना
- आरति कीजै श्रीमुनिराजकी, अधमउधारन आतमकाजकी
- आरति श्रीजिनराज तिहारी, करमदलन संतन हितकारी
- आरसी देखत मन आर-सी लागी
क
च
ज
- जगत में सम्यक उत्तम भाई
- जानत क्यों नहिं रे, हे नर आतमज्ञानी
- जानो धन्य सो धन्य सो धीर वीरा
- जिन के भजन में मगन रहु रे!
- जिन जपि जिन जपि, जिन जपि जीयरा
- जिन नाम सुमर मन! बावरे! कहा इत उत भटकै
- जिनरायके पाय सदा शरनं
- जिनवरमूरत तेरी, शोभा कहिय न जाय
- जिनवानी प्रानी! जान लै रे
- जियको लोभ महा दुखदाई, जाकी शोभा (?)
- जीव! तैं मूढ़पना कित पायो
- जो तैं आतमहित नहिं कीना
- ज्ञाता सोई सच्चा वे, जिन आतम अच्चा
- ज्ञान ज्ञेयमाहिं नाहिं, ज्ञेय हू न ज्ञानमाहिं
- ज्ञान सरोवर सोई हो भविजन
- ज्ञानी ऐसो ज्ञान विचारै
- ज्ञानी ऐसो ज्ञान विचारै 2
त
द
न
प
- परमगुरु बरसत ज्ञान झरी
- परमाथ पंथ सदा पकरौ
- पायो जी सुख आतम लखकै
- पिया बिन कैसे खेलौं होरी
- प्रभु तुम सुमरन ही में तारे
- प्रभु तेरी महिमा किहि मुख गावैं
- प्रभु! तुम नैनन-गोचर नाहीं
- प्राणी लाल! छांडो मन चपलाई
- प्राणी लाल! धरम अगाऊ धारौ
- प्राणी! आतमरूप अनूप है, परतैं भिन्न त्रिकाल
- प्राणी! सोऽहं सोऽहं ध्याय हो
भ
- भजो आतमदेव, रे जिय! भजो आतमदेव, लहो
- भली भई यह होरी आई, आये चेतनराय
- भवि कीजे हो आतमसँभार, राग दोष परिनाम डार
- भाई काया तेरी दुखकी ढेरी
- भाई कौन कहै घर मेरा
- भाई धनि मुनि ध्यान-लगायके खरे हैं
- भाई! अब मैं ऐसा जाना
- भाई! कहा देख गरवाना रे
- भाई! ज्ञान बिना दुख पाया रे
- भाई! ज्ञानका राह दुहेला रे 1
- भाई! ज्ञानका राह सुहेला रे 2
- भाई! ज्ञानी सोई कहिये
- भाई! ब्रह्मज्ञान नहिं जाना रे
- भैया! सो आतम जानो रे!
- भ्रम्योजी भ्रम्यो, संसार महावन, सुख सो रमन्त
म
- मंगल आरती आतमराम । तनमंदिर मन उत्तम ठान
- मगन रहु रे! शुद्धातममें मगन रहु रे
- मन! मेरे राग भाव निवार
- मानुष जनम सफल भयो आज
- मानों मानों जी चेतन यह
- मिथ्या यह संसार है, झूठा यह संसार है रे
- मेरी मेरी करत जनम सब बीता
- मेरे मन कब ह्वै है बैराग
- मैं न जान्यो री! जीव ऐसी करैगो
- मैं निज आतम कब ध्याऊंगा
- मैं नूं भावैजी प्रभु चेतना, मैं नूं भावै जी
- मोहि कब ऐसा दिन आय है
र
व
स
- संसारमें साता नाहीं वे
- सब जगको प्यारा, चेतनरूप निहारा
- सबसों छिमा छिमा कर जीव!
- समझत क्यों नहिं वानी, अज्ञानी जन
- सुन चेतन इक बात
- सुनो! जैनी लोगो, ज्ञानको पंथ कठिन है
- सुरनरसुखदाई, गिरनारि चलौ भाई
- सो ज्ञाता मेरे मन माना, जिन निज-निज पर पर जाना
- सोग न कीजे बावरे! मरें पीतम लोग
- सोहां दीव (शोभा देवें) साधु तेरी बातड़ियां