ऐसे विमल भाव जब पावै: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: '''(राग काफी)''' <br> ऐसे विमल भाव जब पावै, तब हम नरभव सुफल कहावै ।।टेक ।।<br> दरशबो...) |
No edit summary |
||
Line 13: | Line 13: | ||
[[Category:Bhajan]] | [[Category:Bhajan]] | ||
[[Category:भागचन्दजी]] | [[Category:भागचन्दजी]] | ||
[[Category:आध्यात्मिक भक्ति]] |
Latest revision as of 11:15, 14 February 2008
(राग काफी)
ऐसे विमल भाव जब पावै, तब हम नरभव सुफल कहावै ।।टेक ।।
दरशबोधमय निज आतम लखि, परद्रव्यनिको नहिं अपनावै ।
मोह-राग-रुष अहित जान तजि, झटित दूर तिनको छुटकावै ।।१ ।।
कर्म शुभाशुभबंध उदयमें, हर्ष विषाद चित्त नहिं ल्यावै ।
निज-हित-हेत विराग ज्ञान लखि, तिनसों अधिक प्रीति उपजावै ।।२ ।।
विषय चाह तजि आत्मवीर्य सजि, दुखदायक विधिबंध खिरावै ।
`भागचन्द' शिवसुख सब सुखमय, आकुलता बिन लखि चित चावै ।।३ ।।