ऐसे विमल भाव जब पावै
From जैनकोष
(राग काफी)
ऐसे विमल भाव जब पावै, तब हम नरभव सुफल कहावै ।।टेक ।।
दरशबोधमय निज आतम लखि, परद्रव्यनिको नहिं अपनावै ।
मोह-राग-रुष अहित जान तजि, झटित दूर तिनको छुटकावै ।।१ ।।
कर्म शुभाशुभबंध उदयमें, हर्ष विषाद चित्त नहिं ल्यावै ।
निज-हित-हेत विराग ज्ञान लखि, तिनसों अधिक प्रीति उपजावै ।।२ ।।
विषय चाह तजि आत्मवीर्य सजि, दुखदायक विधिबंध खिरावै ।
`भागचन्द' शिवसुख सब सुखमय, आकुलता बिन लखि चित चावै ।।३ ।।