जीव! तू भ्रमत सदीव अकेला: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: जीव! तू भ्रमत सदीव अकेला । संग साथी कोई नहिं तेरा ।।टेक ।।<br> अपना सुखदुख आ...) |
No edit summary |
||
Line 11: | Line 11: | ||
[[Category:Bhajan]] | [[Category:Bhajan]] | ||
[[Category:भागचन्दजी]] | [[Category:भागचन्दजी]] | ||
[[Category:आध्यात्मिक भक्ति]] |
Latest revision as of 11:42, 14 February 2008
जीव! तू भ्रमत सदीव अकेला । संग साथी कोई नहिं तेरा ।।टेक ।।
अपना सुखदुख आप हि भुगतै, होत कुटुंब न भेला ।
स्वार्थ भयैं सब बिछुरि जात हैं, विघट जात ज्यों मेला ।।१ ।।
रक्षक कोइ न पूरन ह्वै जब, आयु अंत की बेला ।
फूटत पारि बँधत नहीं जैसें, दुद्धर-जलको ठेला ।।२ ।।
तन धन जीवन विनशि जात ज्यों, इन्द्रजाल का खेला ।
`भागचन्द' इमि लख करि भाई, हो सतगुरु का चेला ।।३ ।।