आवै न भोगनमें तोहि गिलान: Difference between revisions
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Latest revision as of 11:44, 14 February 2008
आवै न भोगनमें तोहि गिलान ।।टेक ।।
तीरथनाथ भोग तजि दीनें, तिनतैं मन भय आन ।
तू तिनतैं कहुँ डरपत नाहीं, दीसत अति बलवान ।।१ ।।
इन्द्रियतृप्ति काज तू भोगै, विषय महा अघखान ।
सो जैसे घृतधारा डारै, पावकज्वाल बुझान ।।२ ।।
जे सुख तो तीक्षन दुखदाई, ज्यों मधुलिप्त-कृपान ।
ताते `भागचन्द' इनको तजि आत्म स्वरूप पिछान ।।३ ।।