आवै न भोगनमें तोहि गिलान
From जैनकोष
आवै न भोगनमें तोहि गिलान ।।टेक ।।
तीरथनाथ भोग तजि दीनें, तिनतैं मन भय आन ।
तू तिनतैं कहुँ डरपत नाहीं, दीसत अति बलवान ।।१ ।।
इन्द्रियतृप्ति काज तू भोगै, विषय महा अघखान ।
सो जैसे घृतधारा डारै, पावकज्वाल बुझान ।।२ ।।
जे सुख तो तीक्षन दुखदाई, ज्यों मधुलिप्त-कृपान ।
ताते `भागचन्द' इनको तजि आत्म स्वरूप पिछान ।।३ ।।