निरविकलप जोति प्रकाश रही: Difference between revisions
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निरविकलप जोति प्रकाश रही
ना घट अन्तर ना घट बाहिर, वचननिसौं किनहू न कही।।निर. ।।१ ।।
जीभ आँख बिन चाखी देखी, हाथनिसौं किनहू न गही।।निर. ।।२।।
`द्यानत' निज-सर-पदम-भ्रमर ह्वै, समता जोरैं साधु लही।।निर. ।।३ ।।