आरति श्रीजिनराज तिहारी, करमदलन संतन हितकारी: Difference between revisions
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आरति श्रीजिनराज तिहारी, करमदलन संतन हितकारी
सुरनरअसुर करत तुम सेवा । तुमही सब देवनके देवा।।१ ।।
पंचमहाव्रत दुद्धर धारे । रागरोष परिणाम विदारे ।।२ ।।
भवभय भीत शरन जे आये । ते परमारथ पंथ लगाये ।।३ ।।
जो तुम नाथ जपै मन माहीं । जनम मरन भय ताको नाहीं ।।४ ।।
समवसरन संपूरन शोभा । जीते क्रोध मान छल लोभा ।।५ ।।
तुम गुण हम कैसे करि गावैं । गणधर कहत पार नहिं पावैं ।।६ ।।
करुणासागर करुणा कीजे । `द्यानत' सेवक को सुख दीजे ।।७ ।।