निजहितकारज करना भाई!: Difference between revisions
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Latest revision as of 06:51, 16 February 2008
निजहित कारज करना भाई! निजहित कारज करना ।।टेक. ।।
जनममरन दुख पावत जातैं, सो विधिबंध कतरना ।
ज्ञानदरस अर राग फरस रस, निजपर चिह्न भ्रमरना ।
संधिभेद बुधिछैनीतैं कर, निज गहि पर परिहरना।।१ ।।निज. ।।
परिग्रही अपराधी शंकै, त्यागी अभय विचरना ।
त्यौं परचाह बंध दुखदायक, त्यागत सबसुख भरना।।२ ।।निज. ।।
जो भवभ्रमन न चाहे तो अब, सुगुरुसीख उर धरना ।
`दौलत' स्वरस सुधारस चाखो, ज्यौं विनसै भवभरना।।३ ।।निज. ।।