Category:दौलतरामजी
From जैनकोष
कविवर दौलतरामजी :- `छहढाला' जैसी अमर कृति के रचनाकार पण्डित दौलतरामजी का जन्म वि.सं. १८५५-५६ के मध्य सासनी, लाहाथरस में हुआ था । उनके पिता का नाम टोडरमलजी था, जो गंगटीवाल गोत्रीय पल्लीवाल जाति के थे । आपने बजाजी का व्यवसाय चुना और अलीगढ़ बस गये । आपका विवाह अलीगढ़ निवासी चिन्तामणि बजाज की सुपुत्री के साथ हुआ । आपके दो पुत्र हुए, जिनमें बड़े टीकारामजी थे । दौलतरामजी की दो प्रमुख रचनाएँ हैं - एक तो `छहढाला' और दूसरी `दौलत-विलास' । छहढाला ने तो आपको अमरत्व प्रदान किया ही; थ ही आपने १५० के लगभग आध्यात्मिक पदों की रचना की, जो दौलत-विलास में संग्रहित हैं । सभी पद भावपूर्ण हैं और `देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर' की उक्ति को चरितार्थ कर रहे हैं । `छहढाला' ग्रन्थ का निर्माण वि. सं. १८९१ में हुआ । यह कृति अत्यन्त लोकप्रिय है तथा जन-जन के कंठ का हार बनी हुई है । इस ग्रन्थ में सम्पूर्ण जैनधर्म का मर्म छिपा हुआ है । वि. सं. १९२३ में मार्ग शीर्ष कृष्णा अमावस्या को पण्डित दौलतरामजी का देहली में स्वर्गवास हो गया ।
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च
ज
- जगदानंदन जिन अभिनंदन
- जबतैं आनंदजननि दृष्टि परी माई
- जम आन अचानक दावैगा
- जय जय जग-भरम-तिमिर
- जय श्री ऋषभ जिनंदा! नाश तौ करो स्वामी मेरे दुखदंदा
- जाऊँ कहाँ तज शरन तिहारे
- जानत क्यौं नहिं रे
- जिन छवि तेरी यह
- जिन छवि लखत यह बुधि भयी
- जिन रागद्वेष त्यागा वह सतगुरु हमारा
- जिनवर-आनन-भान निहारत
- जिनवानी जान सुजान रे
- जिनवैन सुनत, मोरी भूल भगी
- जिया तुम चालो अपने देश
- जीव तू अनादिहीतैं भूल्यौ शिवगैलवा
- ज्ञानी ऐसी होली मचाई
- ज्ञानी जीव निवार भरमतम