ज्ञानार्णव - श्लोक 1504: Difference between revisions
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Latest revision as of 16:33, 2 July 2021
अपास्य बहिरात्मानं सुस्थिरेणांतरात्मना।
ध्यायेद्विशुद्धमत्यंतं परमात्मानमव्ययम्।।1504।।
जो योगी मुनि बहिरात्मापन को छोड़कर स्थिरचित्त होकर, अपने आपकी ओर झुककर, अंतरात्मा होकर अपने में विश्राम बनाता है वह पुरुष अत्यंत विशुद्ध परमात्मा का ध्यान करता है। उस परमात्मतत्त्व के ध्यान के लिए बाह्य पदार्थों से ममता छोड़नी पड़ेगी।बाह्य पदार्थों से ममता बनी रहे और परमात्मा का ध्यान बना रहे― ये दो बातें एक साथ नहीं हो सकती। पहिले तो बाह्य पदार्थों में ममत्व बुद्धि का परित्याग करें फिर अपने आपमें स्थिर होकर अपने आपमें अपने का ध्यान करें तो वे पुरुष निर्विकल्प शांतस्वरूप परमात्मतत्त्व का दर्शन कर सकते हैं।