ज्ञानार्णव - श्लोक 428: Difference between revisions
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Latest revision as of 16:34, 2 July 2021
धर्माधर्मैकजीवानां प्रदेशा गणनातिगा: ।कियंतोऽपि न कालस्य व्योस्त: पर्यंतवर्जिता: ॥428॥
धर्म, अधर्म, एकजीव, काल और आकाशद्रव्य के प्रदेशों की जानकारी ― किसी भी पदार्थ को द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव इन चार दृष्टियों से निरखा जाता है । लोक में भी हम जिन पदार्थों को जानते हैं उस जानने में द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की दृष्टि की कला पड़ी हुई है । जो कुछ भी दिख रहा है – यह भींत है, इसका ज्ञान होने के प्रसंग में भी चारों बातें विदित हो रही हैं । यह एक पिंड है यह तो द्रव्य हुआ, और यह इतने लंबे चौड़े आकार में है यह क्षेत्र हुआ और इसकी जो भी अवस्था है – सफेद है या मैली है, पुरानी है या नई यह सब काल हो गया और इसकी शक्ति भी साथ-साथ विदित हो रही है, यह भाव हो गया । तो किसी भी लौकिक पदार्थ को जानते हैं तो जानने के ही साथ-साथ चार दृष्टियाँ उसके निर्णय में रहती हैं, चाहे उन्हें पकड़ न सकें, पर समग्रज्ञान, पूर्णज्ञान जब होता है तो उसमें ये चारों बातें रहा ही करती हैं । घड़ी देखा, ज्ञान हुआ तो पिंड जानकर आकार जाना, वर्तमान दशा जानी और उसकी दृढ़ताशक्ति जानी, ये सब ज्ञान हैं या नहीं ? इस ज्ञान में ही ऐसी कला है कि ज्ञान चारों दृष्टियों का निर्णय करता हुआ ही हुआ करता है । जहाँ इन चारों दृष्टियों में कोई भी दृष्टि कम रह जाय तो वहाँ कुछ अधूरापन सा या कुछ उसकी ओर जिज्ञासा सी बनी रहती है । तो इन 6 द्रव्यों के संबंध में जो विवेचन किया जा रहा है उसमें कुछ विवेचन द्रव्यदृष्टि से है, कुछ विवेचन कालदृष्टि से है, कुछ विवेचन भावदृष्टि से है । अब इस श्लोक में क्षेत्रदृष्टि से विवेचन किया जा रहा है । क्षेत्रदृष्टि से आकार का ज्ञान होता है । आकार माप से संबंध रखता है । माप का मूल आधार अविभागी माप होता है । जैसे एक गज कहा तो उसके 3 फुट अंश है, फिर एक फुट में 12 इंच अंश हैं, एक इंच में दस सूत अंश हैं, एक सूत में असंख्यात प्रदेश अंश हैं । एक प्रदेश का अंश नहीं होता है । अविभागी एक परमाणु द्वारा जितना क्षेत्र घिरे उतने क्षेत्र को एक प्रदेश कहते हैं । ऐसे प्रदेश धर्मद्रव्य में असंख्यात हैं, अधर्मद्रव्य में असंख्यात हैं, कालद्रव्य एकप्रदेशी ही है, आकशद्रव्य में अनंत प्रदेश हैं । ये सब क्षेत्रदृष्टि से पदार्थ के संबंध में यदि आकार विदित न हो तो उसके बारे में कुछ स्पष्ट ज्ञान सा नहीं होता । कोई पुरुष किसी मनुष्य की चर्चा कर रहा हो और आप उस मनुष्य से कुछ भी परिचित नहीं हैं, कभी देखा नहीं उसका डीलडौल । आपके चित्त में सब बातें सुनकर कुछ अधूरी सी लगती हैं और जिस मनुष्य के बारे में बात चल रही है उसका आपको अपरिचय है । आकार प्रकार आपको विदित है तो आप उसमें रुचि रखने लगते हैं, क्या कह रहे हैं यह, फिर क्या हुआ, मन माफिक बात सुनना चाहते हैं तो पदार्थ का आकार विदित हो वहाँ स्पष्ट ज्ञान होता है, इस कारण क्षेत्रदृष्टि से भी पदार्थ के संबंध में कुछ ज्ञातव्य ज्ञान होना ही चाहिए ।