रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 105: Difference between revisions
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Latest revision as of 16:35, 2 July 2021
वाक्कायमानसानां, दु:प्रणिधानान्यनादरस्मरणे ।
सामायिकस्यातिगमा, व्यज्यंते पंच भावेन ।। 105 ।।
सामायिक शिक्षाव्रत के अतिचार―श्रावक के बारह व्रतों के प्रकरण में अब तक 10 व्रतों का वर्णन हुआ है, जिन में यह सामायिक नाम का चौथा व्रत चल राह है । यहाँ उस सामायिक व्रत के अतिचार कहे जा रहे हैं । ऐसे कौन से दोष हैं जो सामायिक को भंग तो नहीं करते किंतु उसमें दोष लगाते हैं । वे दोष इस छंद में बताये गए हैं । (1) पहला अतिचार है दु:प्रणिधान । सामायिक करने में, पूजन में संसार संबंधी प्रवृत्ति करना यह वचन दुःप्रणिधान है । जैसे कोई बात किसी को बोल दिया, सामायिक कर रहे हैं उस समय कोई लड़का ऊधम कर रहा, उसे मना कर रहे हैं या कोई प्रयोजन है, कोई कुछ बात करने आया है तो उसको भी कुछ कह दिया यह है वचनदु:प्रणिधान । (2) सामायिक में शरीर को चलायमान करना, संयमरहित ढंग से शरीर को प्रवर्ताना यह कायदु:प्रणिधान है । जैसे थक गए तो एक पैर पसारकर बैठ गए सामायिक में ऐसी शरीर की संयमरहित चेष्टा होना यह कायदु:प्रणिधान है । (3) तीसरा है मनोदु:प्रणिधान । मन में आर्त रौद्रध्यान वाली बात चिंतन में आना । सामायिक में शरीर को चलायमान नहीं किया जा रहा है फिर भी मन में आर्तध्यान और रौद्रध्यान का विचार कर रहे हैं । (4) चौथा अतिचार है अनादर । सामायिक का आदर देते हुए सामायिक न करना यह अनादर अतिचार है । (5) पांचवां अतिचार है स्मरण । सामायिक करते समय सामायिक की क्रिया को भूल जाना । कोई बात भूल गए मान लो कायोत्सर्ग करना भूल गए तो यह है स्मरण नाम का अतिचार । ऐसे सामायिक व्रत में 5 अतिचार होते हैं । अब प्रोषधोपवास नाम का व्रत बतला रहे हैं ।