हिरण्यगर्भ: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1">(1) अयोध्या के राजा सुकोशल और रानी विचित्रमाला का पुत्र । इसके गर्भ में आने पर इसकी माता ने स्वर्ण के समान सुंदर हो जाने से इसका यह नाम रखा गया था । राजा हरि की पुत्री अमृतवती इसकी रानी थी । यह विद्वान् सुंदर और धनी था । बालों में एक सफेद बाल देखकर उत्पन्न हुए वैराग्य से इसने नधुष नामक पुत्र को राज्य देकर विमल मुनि से दीक्षा धारण कर ली थी । <span class="GRef"> पद्मपुराण 22.103-112 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) अयोध्या के राजा सुकोशल और रानी विचित्रमाला का पुत्र । इसके गर्भ में आने पर इसकी माता ने स्वर्ण के समान सुंदर हो जाने से इसका यह नाम रखा गया था । राजा हरि की पुत्री अमृतवती इसकी रानी थी । यह विद्वान् सुंदर और धनी था । बालों में एक सफेद बाल देखकर उत्पन्न हुए वैराग्य से इसने नधुष नामक पुत्र को राज्य देकर विमल मुनि से दीक्षा धारण कर ली थी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_22#103|पद्मपुराण - 22.103-112]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) भरतेश और सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 24.33, 25.118, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 3.156, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 8.206 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) भरतेश और सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 24.33, 25.118, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_3#156|पद्मपुराण -3. 156]], </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_8#206|हरिवंशपुराण - 8.206]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:31, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- सुकौशल मुनि का पुत्र था। अंत में नघुष पुत्र को राज्य देकर दीक्षा ले ली। पद्मपुराण/5/101-112
- योग दर्शन के आद्यप्रवर्तक - देखें योगदर्शन - 2 ।
पुराणकोष से
(1) अयोध्या के राजा सुकोशल और रानी विचित्रमाला का पुत्र । इसके गर्भ में आने पर इसकी माता ने स्वर्ण के समान सुंदर हो जाने से इसका यह नाम रखा गया था । राजा हरि की पुत्री अमृतवती इसकी रानी थी । यह विद्वान् सुंदर और धनी था । बालों में एक सफेद बाल देखकर उत्पन्न हुए वैराग्य से इसने नधुष नामक पुत्र को राज्य देकर विमल मुनि से दीक्षा धारण कर ली थी । पद्मपुराण - 22.103-112
(2) भरतेश और सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 24.33, 25.118, पद्मपुराण -3. 156, हरिवंशपुराण - 8.206