सुभद्र: Difference between revisions
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p id="1">(1) तीर्थंकर महावीर का निर्वाण होने के पश्चात् हुए आचारांग के ज्ञाता चार मुनियों में प्रथम मुनि। <span class="GRef"> महापुराण 2.149-150, 76.525, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 1. 65, 66.24, | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) तीर्थंकर महावीर का निर्वाण होने के पश्चात् हुए आचारांग के ज्ञाता चार मुनियों में प्रथम मुनि। <span class="GRef"> महापुराण 2.149-150, 76.525, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_1#65|हरिवंशपुराण - 1.65]], [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_66#24|66.24]], वीरवर्द्धमान चरित्र 1. 50 </span></p> | ||
<p id="2">(2) मध्यम ग्रैवेयक का एक इंद्रक विमान। <span class="GRef"> महापुराण 53. 15, 73, 40, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 6.52 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) मध्यम ग्रैवेयक का एक इंद्रक विमान। <span class="GRef"> महापुराण 53. 15, 73, 40, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_6#52|हरिवंशपुराण - 6.52]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) क्षेम नगर का एक श्रेष्ठी। इसकी पुत्री क्षेमसुंदरी जीवंधर कुमार को विवाही गयी थी। <span class="GRef"> महापुराण 75.403, 410-411, 415 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) क्षेम नगर का एक श्रेष्ठी। इसकी पुत्री क्षेमसुंदरी जीवंधर कुमार को विवाही गयी थी। <span class="GRef"> महापुराण 75.403, 410-411, 415 </span></p> | ||
<p id="4">(4) एक मुनि। कृष्ण की पटरानी गौरी ने चौथे पूर्वभव में यशस्विनी की पर्याय में इन्हीं से प्रोषधव्रत लिया था। <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 89-100 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) एक मुनि। कृष्ण की पटरानी गौरी ने चौथे पूर्वभव में यशस्विनी की पर्याय में इन्हीं से प्रोषधव्रत लिया था। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_60#89|हरिवंशपुराण - 60.89-100]] </span></p> | ||
<p id="5">(5) कौशांबी नगरी का एक सेठ। सुमित्रा इसकी स्त्री थी। <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.101 </span></p> | <p id="5" class="HindiText">(5) कौशांबी नगरी का एक सेठ। सुमित्रा इसकी स्त्री थी। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_60#101|हरिवंशपुराण - 60.101]] </span></p> | ||
<p id="6">(6) सूर्यवंशी राजा अमृत का पुत्र। राजा सागर इसका पुत्र था। <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.6 </span></p> | <p id="6" class="HindiText">(6) सूर्यवंशी राजा अमृत का पुत्र। राजा सागर इसका पुत्र था। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_5#6|पद्मपुराण - 5.6]] </span></p> | ||
<p id="7">(7) दूसरे नारायण द्विपृष्ठ के पूर्वभव के दीक्षागुरु। <span class="GRef"> पद्मपुराण 20. 216 </span></p> | <p id="7" class="HindiText">(7) दूसरे नारायण द्विपृष्ठ के पूर्वभव के दीक्षागुरु। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#216|पद्मपुराण - 20.216]] </span></p> | ||
<p id="8">(8) नंदीश्वर समुद्र का एक रक्षक देव। <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.645 </span></p> | <p id="8" class="HindiText">(8) नंदीश्वर समुद्र का एक रक्षक देव। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#645|हरिवंशपुराण - 5.645]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:30, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- यक्ष जाति के व्यंतर देवों का एक भेद- देखें यक्ष ,
- नवग्रैवेयक का पाँचवाँ पटल व इंद्रक- देखें स्वर्ग - 5.3
- अरुणीवर द्वीप का रक्षक व्यंतर देव- देखें व्यंतर - 4.7
- नंदीश्वर द्वीप का रक्षक व्यंतर देव- देखें व्यंतर - 4.7
- रुचक पर्वतस्थ एक कूट- देखें लोक - 5.13
- श्रुतावतार की पट्टावली के अनुसार आप भगवान् वीर के पश्चात् मूल गुरु परंपरा में दश अंगधारी अथवा दूसरी मान्यतानुसार केवल आचारांग धारी थे। समय-वी.नि.468-474 ई.पू.59-63- देखें इतिहास - 4.2
पुराणकोष से
(1) तीर्थंकर महावीर का निर्वाण होने के पश्चात् हुए आचारांग के ज्ञाता चार मुनियों में प्रथम मुनि। महापुराण 2.149-150, 76.525, हरिवंशपुराण - 1.65, 66.24, वीरवर्द्धमान चरित्र 1. 50
(2) मध्यम ग्रैवेयक का एक इंद्रक विमान। महापुराण 53. 15, 73, 40, हरिवंशपुराण - 6.52
(3) क्षेम नगर का एक श्रेष्ठी। इसकी पुत्री क्षेमसुंदरी जीवंधर कुमार को विवाही गयी थी। महापुराण 75.403, 410-411, 415
(4) एक मुनि। कृष्ण की पटरानी गौरी ने चौथे पूर्वभव में यशस्विनी की पर्याय में इन्हीं से प्रोषधव्रत लिया था। हरिवंशपुराण - 60.89-100
(5) कौशांबी नगरी का एक सेठ। सुमित्रा इसकी स्त्री थी। हरिवंशपुराण - 60.101
(6) सूर्यवंशी राजा अमृत का पुत्र। राजा सागर इसका पुत्र था। पद्मपुराण - 5.6
(7) दूसरे नारायण द्विपृष्ठ के पूर्वभव के दीक्षागुरु। पद्मपुराण - 20.216
(8) नंदीश्वर समुद्र का एक रक्षक देव। हरिवंशपुराण - 5.645