अतिथिसंविभागव्रत: Difference between revisions
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<p> चार शिक्षाव्रतों में चौथा शिक्षाव्रत, अपर नाम अतिथि-पूजन । | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> चार शिक्षाव्रतों में चौथा शिक्षाव्रत, अपर नाम अतिथि-पूजन । पद्मपुराणकार ने इसे तीसरा शिक्षाव्रत कहा है । अपने आने की तिथि का संकेत किये बिना, घर आये अतिथि का शक्ति के अनुसार आदरपूर्वक लोभरहित होकर विधिपूर्वक भिक्षा (आहार), औषधि, उपकरण तथा आवास देना <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_14#199|पद्मपुराण - 14.199-201]], [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_18#47|हरिवंशपुराण - 18.47]], [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_58#158|58.158]] </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18.57 </span><br> | ||
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यह गृहस्थों का व्रत है । पात्रों की अपेक्षा से यह अनेक प्रकार का होता है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_11#39|पद्मपुराण - 11.39-40]]</span>, <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_58#183|हरिवंशपुराण - 58.183]] </span>देखें [[ शिक्षाव्रत ]]।</p> | |||
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Latest revision as of 14:39, 27 November 2023
चार शिक्षाव्रतों में चौथा शिक्षाव्रत, अपर नाम अतिथि-पूजन । पद्मपुराणकार ने इसे तीसरा शिक्षाव्रत कहा है । अपने आने की तिथि का संकेत किये बिना, घर आये अतिथि का शक्ति के अनुसार आदरपूर्वक लोभरहित होकर विधिपूर्वक भिक्षा (आहार), औषधि, उपकरण तथा आवास देना पद्मपुराण - 14.199-201, हरिवंशपुराण - 18.47, 58.158 वीरवर्द्धमान चरित्र 18.57
इसके पाँच अतिचार है—1. सचित्तनिक्षेप-हरे पत्तों पर रखकर आहार देना ।
2. सचित्तावरण-हरे पत्तों से ढका हुआ आहार देना
3. परव्यपदेश—अन्य दाता द्वारा देय वस्तु का दान करना
4. मात्सर्य-दूसरे दाताओं के गुणों को सहन नहीं करना
5. कालातिक्रम-समय पर आहार नहीं देना ।