अतिथिसंविभागव्रत
From जैनकोष
चार शिक्षाव्रतों में चौथा शिक्षाव्रत, अपर नाम अतिथि-पूजन । पद्मपुराणकार ने इसे तीसरा शिक्षाव्रत कहा है । अपने आने की तिथि का संकेत किये बिना, घर आये अतिथि का शक्ति के अनुसार आदरपूर्वक लोभरहित होकर विधिपूर्वक भिक्षा (आहार), औषधि, उपकरण तथा आवास देना पद्मपुराण - 14.199-201, हरिवंशपुराण - 18.47, 58.158 वीरवर्द्धमान चरित्र 18.57
इसके पाँच अतिचार है—1. सचित्तनिक्षेप-हरे पत्तों पर रखकर आहार देना ।
2. सचित्तावरण-हरे पत्तों से ढका हुआ आहार देना
3. परव्यपदेश—अन्य दाता द्वारा देय वस्तु का दान करना
4. मात्सर्य-दूसरे दाताओं के गुणों को सहन नहीं करना
5. कालातिक्रम-समय पर आहार नहीं देना ।