अब मोहि जानि परी: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: अब मोहि जानि परी, भवोदधि तारनको है जैन ।।टेक. ।।<br> मोह तिमिर तैं सदा कालके...) |
No edit summary |
||
Line 13: | Line 13: | ||
[[Category:Bhajan]] | [[Category:Bhajan]] | ||
[[Category:दौलतरामजी]] | [[Category:दौलतरामजी]] | ||
[[Category:आध्यात्मिक भक्ति]] |
Latest revision as of 03:16, 16 February 2008
अब मोहि जानि परी, भवोदधि तारनको है जैन ।।टेक. ।।
मोह तिमिर तैं सदा कालके, छाय रहे मेरे नैन ।
ताके नाशन हेत लियो, मैं अंजन जैन सु ऐन।।१ ।।अब. ।।
मिथ्यामती भेषको लेकर, भाषत हैं जो वैन ।
सो वे बैन असार लखे मैं, ज्यों पानी के फैन।।२ ।।अब. ।।
मिथ्यामती वेल जग फैली, सो दुख फलकी दैन ।
सतगुरु भक्तिकुठार हाथ लै, छेद लियो अति चैन।।३ ।।अब. ।।
जा बिन जीव सदैव कालतैं, विधि वश सुखन लहै न ।
अशरन-शरन अभय `दौलत' अब, भजो रैन दिन जैन।।४ ।।अब. ।।