हे मन तेरी को कुटेव यह: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: हे मन तेरी को कुटेव यह, करनविषय में धावै है ।।टेक ।।<br> इनहीके वश तू अनादित...) |
No edit summary |
||
Line 13: | Line 13: | ||
[[Category:Bhajan]] | [[Category:Bhajan]] | ||
[[Category:दौलतरामजी]] | [[Category:दौलतरामजी]] | ||
[[Category:आध्यात्मिक भक्ति]] |
Latest revision as of 07:20, 16 February 2008
हे मन तेरी को कुटेव यह, करनविषय में धावै है ।।टेक ।।
इनहीके वश तू अनादितैं, निजस्वरूप न लखावै है ।
पराधीन छिन छीन समाकुल, दुर्गति विपति चखावै है ।।१ ।।
फरस विषयके कारन बारन, गरत परत दुख पावै है ।
रसनाइन्द्रीवश झष जलमें, कंटक कंठ छिदावै है ।।२ ।।
गन्धलोल पंकज मुद्रित में, अलि निज प्रान खपावै है ।
नयनविषयवश दीप-शिखा में, अंग पतंग जरावै है ।।३ ।।
करन विषयवश हिरन अरनमें, खलकर प्रान लुनावै है ।
`दौलत' तज इनको जिनको भज, यह गुरु सीख सुनावै है ।।४ ।।