जो तैं आतमहित नहिं कीना: Difference between revisions
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जो तैं आतमहित नहिं कीना
रामा रामा धन धन कीना, नरभव फल नहिं लीना।।जो तैं. ।।
जप तप करकैं लोक रिझाये, प्रभुताके रस भीना ।
अंतर्गत परिनाम न सोधे, एको गरज सरी ना ।।जो तैं. ।।१ ।।
बैठि सभामें बहु उपदेशे, आप भये परवीना ।
ममता डोरी तोरी नाहीं, उत्तमतैं भये हीना ।।जो तैं. ।।२ ।।
`द्यानत' मन वच काय लायके, जिन अनुभव चित दीना ।
अनुभव धारा ध्यान विचारा, मंदिर कलश नवीना ।।जो तैं. ।।३ ।।