जीव! तैं मूढ़पना कित पायो: Difference between revisions
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जीव! तैं मूढ़पना कित पायो
सब जग स्वारथको चाहत है, स्वारथ तोहि न भायो।।जीव. ।।
अशुचि अचेत दुष्ट तनमांही, कहा जान विरमायो ।
परम अतिन्द्री निजसुख हरिकै, विषय रोग लपटायो ।।जीव. ।।१ ।।
चेतन नाम भयो जड़ काहे, अपनो नाम गमायो ।
तीन लोकको राज छांडिके, भीख मांग न लजायो ।।जीव. ।।२ ।।
मूढ़पना मिथ्या जब छूटै, तब तू संत कहायो ।
`द्यानत' सुख अनन्त शिव विलसो, यों सद्गुरु बतलायो ।।जीव. ।।३ ।।