समझत क्यों नहिं वानी, अज्ञानी जन: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: समझत क्यों नहिं वानी, अज्ञानी जन<br> स्यादवाद-अंकित सुखदायक, भाषी केवलज्ञ...) |
No edit summary |
||
(One intermediate revision by the same user not shown) | |||
Line 12: | Line 12: | ||
[[Category:Bhajan]] | [[Category:Bhajan]] | ||
[[Category:द्यानतरायजी]] | [[Category:द्यानतरायजी]] | ||
[[Category:शास्त्र भक्ति ]] |
Latest revision as of 02:24, 16 February 2008
समझत क्यों नहिं वानी, अज्ञानी जन
स्यादवाद-अंकित सुखदायक, भाषी केवलज्ञानी ।।समझत. ।।
जास लखैं निरमल पद पावै, कुमति कुगतिकी हानी ।
उदय भया जिहिमें परगासी, तिहि जानी सरधानी ।।समझत. ।।१ ।।
जामें देव धरम गुरु वरनें, तीनौं मुकति निसानी ।
निश्चय देव धरम गुरु आतम, जानत विरला प्रानी ।।समझत. ।।२ ।।
या जगमांहि तुझे तारनको, कारन नाव बखानी ।
`द्यानत' सो गहिये निहचैसों, हूजे ज्यों शिवथानी ।।समझत. ।।३ ।।