औपशमिक भाव: Difference between revisions
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<span class="GRef">धवला पुस्तक 1/1,1,8/161/2</span> <p class="SanskritText">तेषामुपशमादौपशमिकः। .....गुणसहचरित्वादात्मापि गुणसंज्ञां प्रतिलभते।</p><p class="HindiText">= जो कर्मों के उपशम से उत्पन्न होता है उसे '''औपशमिक भाव''' कहते हैं। (क्योंकि) गुणों के साहचर्य से आत्मा भी गुणसंज्ञा को प्राप्त होता है।</p><br> | |||
<p class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[ उपशम#6 | उपशम - 6]]।</p> | |||
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कर्मों के दबने को उपशम और उससे उत्पन्न जीव के शुद्ध परिणामों को औपशमिक भाव कहते हैं।
धवला पुस्तक 1/1,1,8/161/2
तेषामुपशमादौपशमिकः। .....गुणसहचरित्वादात्मापि गुणसंज्ञां प्रतिलभते।
= जो कर्मों के उपशम से उत्पन्न होता है उसे औपशमिक भाव कहते हैं। (क्योंकि) गुणों के साहचर्य से आत्मा भी गुणसंज्ञा को प्राप्त होता है।
अधिक जानकारी के लिये देखें उपशम - 6।