परमगुरु बरसत ज्ञान झरी: Difference between revisions
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परमगुरु बरसत ज्ञान झरी
हरषि हरषि बहु गरजि गरजिकै, मिथ्यातपन हरी ।।परमगुरु. ।।
सरधा भूमि सुहावनि लागै, संशय बेल हरी ।
भविजन मनसरवर भरि उमड़े, समुझि पवन सियरी ।।परमगुरु. ।।१ ।।
स्यादवाद नय बिजली चमकै, पर-मत-शिखर परी ।
चातक मोर साधु श्रावकके, हृदय सुभक्ति भरी ।।परमगुरु. ।।२ ।।
जप तप परमानन्द बढ़्यो है, सुसमय नींव धरी ।
`द्यानत' पावन पावस आयो, थिरता शुद्ध करी ।।परमगुरु. ।।३ ।।