स्वसंवेदन: Difference between revisions
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<span class="GRef">तत्त्वानुशासन श्लोक 161</span> <p class="SanskritText">वेद्यत्वं वेदकत्वं च यत् स्वस्य स्वेन योगिनः। तत्स्वसंवेदनं प्राहुरात्मनोऽनुभवं दृशम् ॥161॥ </p> | |||
<span class="HindiText">= `स्वसंवेदन' आत्मा के उस साक्षात् दर्शनरूप अनुभव का नाम है जिसमें योगी आत्मा स्वयं ही ज्ञेय तथा ज्ञायक भाव को प्राप्त होता है।</span><br/> | |||
<span class="HindiText"> अधिक जानकारी के लिए देखें [[ अनुभव#1.5 |अनुभव-1.5 ]]।</span> | |||
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Latest revision as of 10:28, 4 August 2023
तत्त्वानुशासन श्लोक 161
वेद्यत्वं वेदकत्वं च यत् स्वस्य स्वेन योगिनः। तत्स्वसंवेदनं प्राहुरात्मनोऽनुभवं दृशम् ॥161॥
= `स्वसंवेदन' आत्मा के उस साक्षात् दर्शनरूप अनुभव का नाम है जिसमें योगी आत्मा स्वयं ही ज्ञेय तथा ज्ञायक भाव को प्राप्त होता है।
अधिक जानकारी के लिए देखें अनुभव-1.5 ।