स्वसंवेदन
From जैनकोष
तत्त्वानुशासन श्लोक 161
वेद्यत्वं वेदकत्वं च यत् स्वस्य स्वेन योगिनः। तत्स्वसंवेदनं प्राहुरात्मनोऽनुभवं दृशम् ॥161॥
= `स्वसंवेदन' आत्मा के उस साक्षात् दर्शनरूप अनुभव का नाम है जिसमें योगी आत्मा स्वयं ही ज्ञेय तथा ज्ञायक भाव को प्राप्त होता है।
अधिक जानकारी के लिए देखें अनुभव-1.5 ।