नंद्यावत: Difference between revisions
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<p id="1">(1) एक नगर । यहाँँ का राजा अतिवीर्य ने विजयनगर के राजा पृथ्वीधर को लिखा था कि वह राम के भ्राता भरत को जीतने में उसकी सहायता करे । <span class="GRef"> पद्मपुराण 37.6 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) एक नगर । यहाँँ का राजा अतिवीर्य ने विजयनगर के राजा पृथ्वीधर को लिखा था कि वह राम के भ्राता भरत को जीतने में उसकी सहायता करे । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_37#6|पद्मपुराण - 37.6]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) राम-लक्ष्मण का वैभव संपन्न भवन । <span class="GRef"> पद्मपुराण 83. 3-4 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) राम-लक्ष्मण का वैभव संपन्न भवन । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_83#3|पद्मपुराण - 83.3-4]] </span></p> | ||
<p>(रे) पश्चिम विदेहक्षेत्र के विजयार्ध पर्वत का एक नगर । यहाँ के राजा नंदीश्वर की कनकाभा रानी से नयनानंद नाम का पुत्र हुआ था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 106. 71-72 </span></p> | <p>(रे) पश्चिम विदेहक्षेत्र के विजयार्ध पर्वत का एक नगर । यहाँ के राजा नंदीश्वर की कनकाभा रानी से नयनानंद नाम का पुत्र हुआ था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_106#71|पद्मपुराण - 106.71-72]] </span></p> | ||
<p id="4">(4) सौधर्म युगल का छब्बीसवाँ पटल । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 6.47 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) सौधर्म युगल का छब्बीसवाँ पटल । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_6#47|हरिवंशपुराण - 6.47]] </span></p> | ||
<p id="5">(5) रुचक पर्वत की पूर्व दिशा में विद्यमान एक कूट । यह एक हजार योजन चौड़ा और पाँच सौ योजन ऊँचा है । यहाँ पद्मोत्तर देव रहता है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.701-702 </span></p> | <p id="5" class="HindiText">(5) रुचक पर्वत की पूर्व दिशा में विद्यमान एक कूट । यह एक हजार योजन चौड़ा और पाँच सौ योजन ऊँचा है । यहाँ पद्मोत्तर देव रहता है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#701|हरिवंशपुराण - 5.701-702]] </span></p> | ||
<p id="6">(6) तेरहवें स्वर्ग का विमान । <span class="GRef"> महापुराण 9.191, 62. 410 </span></p> | <p id="6" class="HindiText">(6) तेरहवें स्वर्ग का विमान । <span class="GRef"> महापुराण 9.191, 62. 410 </span></p> | ||
<p id="7">(7) भरत चक्रवर्ती की शिविर-स्थली । <span class="GRef"> महापुराण 37. 147 </span></p> | <p id="7" class="HindiText">(7) भरत चक्रवर्ती की शिविर-स्थली । <span class="GRef"> महापुराण 37. 147 </span></p> | ||
<p id="8">(8) सहस्राम्रन का एक वृक्ष । तीर्थंकर शांतिनाथ ने इसी वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त किया था । <span class="GRef"> महापुराण 63.481, 483 </span></p> | <p id="8" class="HindiText">(8) सहस्राम्रन का एक वृक्ष । तीर्थंकर शांतिनाथ ने इसी वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त किया था । <span class="GRef"> महापुराण 63.481, 483 </span></p> | ||
<p id="9">(9) राजा सिद्धार्थ का राजभवन । महावीर की जननी प्रियकारिणी को इसी भवन में सोलह स्वप्न दिखायी दिये थे । <span class="GRef"> महापुराण 74.254-256 </span></p> | <p id="9" class="HindiText">(9) राजा सिद्धार्थ का राजभवन । महावीर की जननी प्रियकारिणी को इसी भवन में सोलह स्वप्न दिखायी दिये थे । <span class="GRef"> महापुराण 74.254-256 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:11, 27 November 2023
(1) एक नगर । यहाँँ का राजा अतिवीर्य ने विजयनगर के राजा पृथ्वीधर को लिखा था कि वह राम के भ्राता भरत को जीतने में उसकी सहायता करे । पद्मपुराण - 37.6
(2) राम-लक्ष्मण का वैभव संपन्न भवन । पद्मपुराण - 83.3-4
(रे) पश्चिम विदेहक्षेत्र के विजयार्ध पर्वत का एक नगर । यहाँ के राजा नंदीश्वर की कनकाभा रानी से नयनानंद नाम का पुत्र हुआ था । पद्मपुराण - 106.71-72
(4) सौधर्म युगल का छब्बीसवाँ पटल । हरिवंशपुराण - 6.47
(5) रुचक पर्वत की पूर्व दिशा में विद्यमान एक कूट । यह एक हजार योजन चौड़ा और पाँच सौ योजन ऊँचा है । यहाँ पद्मोत्तर देव रहता है । हरिवंशपुराण - 5.701-702
(6) तेरहवें स्वर्ग का विमान । महापुराण 9.191, 62. 410
(7) भरत चक्रवर्ती की शिविर-स्थली । महापुराण 37. 147
(8) सहस्राम्रन का एक वृक्ष । तीर्थंकर शांतिनाथ ने इसी वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त किया था । महापुराण 63.481, 483
(9) राजा सिद्धार्थ का राजभवन । महावीर की जननी प्रियकारिणी को इसी भवन में सोलह स्वप्न दिखायी दिये थे । महापुराण 74.254-256