वत्स: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) जंबूद्वीप में भरतक्षेत्र के मध्य आर्यखंड का एक | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) जंबूद्वीप में भरतक्षेत्र के मध्य आर्यखंड का एक देश। कौशांबी इस देश की मुख्य नगरी थी। इस देश की रचना तीर्थंकर वृषभदेव के समय में की गयी थी। <span class="GRef"> महापुराण 16.153, 70.63, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_37#22|पद्मपुराण - 37.22]], </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_11#75|हरिवंशपुराण - 11.75]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_11#14|हरिवंशपुराण - 11.14]].2 </span></p> | ||
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<p id="3">(3) धातकीखंड द्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में सीता नदी के दक्षिण -तट पर स्थित | <p id="3" class="HindiText">(3) धातकीखंड द्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में सीता नदी के दक्षिण -तट पर स्थित देश। <span class="GRef"> महापुराण 52.2-3 </span></p> | ||
<p id="4">(4) पुष्करवर द्वीप के पूर्वार्ध भाग में स्थित सुमेरु-पर्वत की पूर्व दिशा के विदेहक्षेत्र में सीता नदी के दक्षिणी-तट पर स्थित | <p id="4" class="HindiText">(4) पुष्करवर द्वीप के पूर्वार्ध भाग में स्थित सुमेरु-पर्वत की पूर्व दिशा के विदेहक्षेत्र में सीता नदी के दक्षिणी-तट पर स्थित देश। सुसीमा नगरी इस देश की राजधानी है । <span class="GRef"> महापुराण 56.2 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:21, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- भरतक्षेत्र मध्य आर्यखंड का एक देश−देखें मनुष्य - 4. ।
- प्रयाग के उत्तर भाग का मैदान । राजधानी कौशांबी । ( महापुराण/प्रस्तावना49/पं. पन्नालाल ) ।
पुराणकोष से
(1) जंबूद्वीप में भरतक्षेत्र के मध्य आर्यखंड का एक देश। कौशांबी इस देश की मुख्य नगरी थी। इस देश की रचना तीर्थंकर वृषभदेव के समय में की गयी थी। महापुराण 16.153, 70.63, पद्मपुराण - 37.22, हरिवंशपुराण - 11.75,हरिवंशपुराण - 11.14.2
(2) जंबूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में सीता नदी के दक्षिण तट पर स्थित एक देश। सुसीमा इस देश की प्रसिद्ध नगरी है। महापुराण 48.3-4
(3) धातकीखंड द्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में सीता नदी के दक्षिण -तट पर स्थित देश। महापुराण 52.2-3
(4) पुष्करवर द्वीप के पूर्वार्ध भाग में स्थित सुमेरु-पर्वत की पूर्व दिशा के विदेहक्षेत्र में सीता नदी के दक्षिणी-तट पर स्थित देश। सुसीमा नगरी इस देश की राजधानी है । महापुराण 56.2