अरुण: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
(6 intermediate revisions by 4 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
| | ||
== सिद्धांतकोष से == | == सिद्धांतकोष से == | ||
<p>1. सौधर्म स्वर्गका छठा पटल व इंद्रक - देखें [[ स्वर्ग#5.3 | स्वर्ग - 5.3]]; 2. लौकांतिक देवोंका एक भेद- देखें [[ लौकांतिक ]]; 3. दक्षिण अरुणवर द्वीपका रक्षक देव- देखें [[ भवन#4 | भवन - 4]]; 4. दक्षिण अरुणवर समुद्रका रक्षक देव - देखें [[ भवन#4 | भवन - 4]]।</p> | <p><br> | ||
<big>1. सौधर्म स्वर्गका छठा पटल व इंद्रक - देखें [[ स्वर्ग#5.3 | स्वर्ग - 5.3]]; <br> | |||
2. लौकांतिक देवोंका एक भेद- देखें [[ लौकांतिक देव ]]; <br> | |||
3. दक्षिण अरुणवर द्वीपका रक्षक देव- देखें [[ भवन#4 | भवन - 4]]; <br> | |||
4. दक्षिण अरुणवर समुद्रका रक्षक देव - देखें [[ भवन#4 | भवन - 4]]</big>।</p> | |||
Line 11: | Line 15: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: अ]] | [[Category: अ]] | ||
[[Category: करणानुयोग]] | |||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p id="1">(1) मध्य लोक का नवम द्वीप । इसे अरुणसागर घेरे हुए है । अरुण और अरुणप्रभ देव इसके स्वामी हैं । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.617 | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) मध्य लोक का नवम द्वीप । इसे अरुणसागर घेरे हुए है । अरुण और अरुणप्रभ देव इसके स्वामी हैं । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#617|हरिवंशपुराण - 5.617-645]]</span></p> | ||
<p id="2">(2) मध्य लोक का नवम सागर । यह अरुण द्वीप को सब ओर से घेरे हुए है । सुगंध और सर्वगंध नाम के देव इसके स्वामी हैं । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.161 | <p id="2" class="HindiText">(2) मध्य लोक का नवम सागर । यह अरुण द्वीप को सब ओर से घेरे हुए है । सुगंध और सर्वगंध नाम के देव इसके स्वामी हैं । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#161|हरिवंशपुराण - 5.161-164]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) विजयावान् पर्वत का निवासी व्यंतर देव । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.161-164 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) विजयावान् पर्वत का निवासी व्यंतर देव । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#161|हरिवंशपुराण - 5.161-164]] </span></p> | ||
<p id="4">(4) सौधर्म और ऐशान स्वर्गो के इकतीस पटलों मे छठा पटल । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 6.44-47 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) सौधर्म और ऐशान स्वर्गो के इकतीस पटलों मे छठा पटल । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_6#44|हरिवंशपुराण - 6.44-47]] </span></p> | ||
<p id="5">(5) पंचम स्वर्ग के लौकांतिक देवों का एक भेद । <span class="GRef"> महापुराण 17. 47-50, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 55.101, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 12-2-8 </span></p> | <p id="5" class="HindiText">(5) पंचम स्वर्ग के लौकांतिक देवों का एक भेद । <span class="GRef"> महापुराण 17. 47-50, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_55#101|हरिवंशपुराण - 55.101]], </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 12-2-8 </span></p> | ||
<p id="6">(6) एक ग्राम । यहाँ कपिल का आश्रम था । राम वनवास के समय यहाँ आये थे । <span class="GRef"> पद्मपुराण 1.-83, 35.5-7 </span></p> | <p id="6" class="HindiText">(6) एक ग्राम । यहाँ कपिल का आश्रम था । राम वनवास के समय यहाँ आये थे । <span class="GRef"> पद्मपुराण 1.-83, 35.5-7 </span></p> | ||
<p id="7">(7) विजयार्ध पर्वत पर स्थित नगर । <span class="GRef"> पद्मपुराण 17.154 </span></p> | <p id="7" class="HindiText">(7) विजयार्ध पर्वत पर स्थित नगर । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_17#154|पद्मपुराण - 17.154]] </span></p> | ||
</div> | </div> | ||
Line 31: | Line 35: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: अ]] | [[Category: अ]] | ||
[[Category: करणानुयोग]] |
Latest revision as of 14:39, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
1. सौधर्म स्वर्गका छठा पटल व इंद्रक - देखें स्वर्ग - 5.3;
2. लौकांतिक देवोंका एक भेद- देखें लौकांतिक देव ;
3. दक्षिण अरुणवर द्वीपका रक्षक देव- देखें भवन - 4;
4. दक्षिण अरुणवर समुद्रका रक्षक देव - देखें भवन - 4।
पुराणकोष से
(1) मध्य लोक का नवम द्वीप । इसे अरुणसागर घेरे हुए है । अरुण और अरुणप्रभ देव इसके स्वामी हैं । हरिवंशपुराण - 5.617-645
(2) मध्य लोक का नवम सागर । यह अरुण द्वीप को सब ओर से घेरे हुए है । सुगंध और सर्वगंध नाम के देव इसके स्वामी हैं । हरिवंशपुराण - 5.161-164
(3) विजयावान् पर्वत का निवासी व्यंतर देव । हरिवंशपुराण - 5.161-164
(4) सौधर्म और ऐशान स्वर्गो के इकतीस पटलों मे छठा पटल । हरिवंशपुराण - 6.44-47
(5) पंचम स्वर्ग के लौकांतिक देवों का एक भेद । महापुराण 17. 47-50, हरिवंशपुराण - 55.101, वीरवर्द्धमान चरित्र 12-2-8
(6) एक ग्राम । यहाँ कपिल का आश्रम था । राम वनवास के समय यहाँ आये थे । पद्मपुराण 1.-83, 35.5-7
(7) विजयार्ध पर्वत पर स्थित नगर । पद्मपुराण - 17.154