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<div class="HindiText"><span class="GRef"> महापुराण/ </span> | <div class="HindiText"><span class="GRef"> महापुराण/सर्ग/श्लोक</span>=यह अपने पूर्वभव में पुरुरवा नामक एक भील था। मुनिराजों से अणुव्रतों के ग्रहण पूर्वक सौधर्म स्वर्ग में उत्पन्न हुआ। फिर भरत चक्रवर्ती के मरीचि नामक पुत्र हुआ, जिसने मिथ्या मार्ग को चलाया था। तदनंतर चिरकाल तक भ्रमण कर (62/85-90) राजगृह नगर के राजा विश्वभूति का पुत्र विश्वनंदि हुआ (57/72)। फिर महाशुक्र स्वर्ग में देव हुआ (57/82) तत्पश्चात् वर्तमान भव में श्रेयांसनाथ भगवान् के समय में प्रथम नारायण हुए (57/86); (82/90) विशेष परिचय-देखें [[ शलाका पुरुष#IV | शलाका पुरुष - IV]]। यह वर्धमान भगवान् का पूर्व का दसवाँ भव है। (76/534-543); (74/241-260)–देखें [[ महावीर ]]। | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) पोदनपुर के महाराजा प्रजापति तथा महारानी मृगावती का पुत्र― प्रथम नारायण । यह राजा की प्रथम रानी जयावती के पुत्र विजय बलभद्र का भाई था और तीर्थंकर श्रेयांसनाथ के तीर्थ में हुआ था <span class="GRef"> महापुराण 57.84-85, 62.90, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 20.218-288, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 53. 36, 60.288, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 4.41-44, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 3. 61-67 </span>इसका रथनूपुर नगर के राजा विद्याधर ज्वलनजटी की पुत्री स्वयंप्रभा से विवाह हुआ था । इसने ज्वलनजटी से सिंह एवं गरुड़वाहिनी विद्याएँ प्राप्त की थी । इसकी शारीरिक अवगाहना अस्सी धनुष और आयु चौरासी लाख वर्ष थी । ये दोनों भाई अलका नगरी के राजा विद्याधर मयूरग्रीव के पुत्र प्रतिनारायण अश्वग्रीव को मारकर तीन खंड पृथ्वी के स्वामी हुए थे । सब मिलाकर सोलह हजार मुकुटबद्ध राजा, विद्याधर और व्यंतर देव इसके अधीन थे । धनुष, शंख, चक्र, दंड, असि, शक्ति और गदा ये इसके सात रत्न थे । इसकी सोलह हजार रानियाँ थीं । स्वयंप्रभा इनकी पटरानी थी । इससे दो पुत्र-विजय और विजयभद्र और एक पुत्री ज्योतिप्रभा हुई । आरंभ की अधिकता के कारण रौद्रध्यान से मरकर यह सातवें नरक गया था । <span class="GRef"> महापुराण 57.89-95, 62.25-30, 43-44, 111-112, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 46.213, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.517-518, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 4. 85, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 3. 71, 106-131 </span>यह अपने पूर्वभव में पुरूरवा भील था । मुनिराज से अणुव्रत ग्रहण कर मरण करने से सौधर्म स्वर्ग में उत्पन्न हुआ । वहाँ से चयकर यह भरत चक्रवर्ती का मरीचि नामक पुत्र हुआ । इसने मिथ्यामार्ग चलाया था । इसके बाद यह चिरकाल तक अनेक गतियों में भ्रमण करता रहा । पश्चात् राजगृह नगर के राजा विश्वभूति का पुत्र विश्वनंदी हुआ । इसके पश्चात् महाशुक्र स्वर्ग मे देव और तत्पश्चात् त्रिपृष्ठ की पर्याय में नारायण हुआ । आगामी दसवें भव में यही तीर्थंकर महावीर हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 57.72, 82 , 62. 85-90, 74.203-204, 241-260, 76 534-543 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) पोदनपुर के महाराजा प्रजापति तथा महारानी मृगावती का पुत्र― प्रथम नारायण । यह राजा की प्रथम रानी जयावती के पुत्र विजय बलभद्र का भाई था और तीर्थंकर श्रेयांसनाथ के तीर्थ में हुआ था <span class="GRef"> महापुराण 57.84-85, 62.90, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#218|पद्मपुराण - 20.218-288]], </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_53#36|हरिवंशपुराण - 53.36]], 60.288, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 4.41-44, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 3. 61-67 </span>इसका रथनूपुर नगर के राजा विद्याधर ज्वलनजटी की पुत्री स्वयंप्रभा से विवाह हुआ था । इसने ज्वलनजटी से सिंह एवं गरुड़वाहिनी विद्याएँ प्राप्त की थी । इसकी शारीरिक अवगाहना अस्सी धनुष और आयु चौरासी लाख वर्ष थी । ये दोनों भाई अलका नगरी के राजा विद्याधर मयूरग्रीव के पुत्र प्रतिनारायण अश्वग्रीव को मारकर तीन खंड पृथ्वी के स्वामी हुए थे । सब मिलाकर सोलह हजार मुकुटबद्ध राजा, विद्याधर और व्यंतर देव इसके अधीन थे । धनुष, शंख, चक्र, दंड, असि, शक्ति और गदा ये इसके सात रत्न थे । इसकी सोलह हजार रानियाँ थीं । स्वयंप्रभा इनकी पटरानी थी । इससे दो पुत्र-विजय और विजयभद्र और एक पुत्री ज्योतिप्रभा हुई । आरंभ की अधिकता के कारण रौद्रध्यान से मरकर यह सातवें नरक गया था । <span class="GRef"> महापुराण 57.89-95, 62.25-30, 43-44, 111-112, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_46#213|पद्मपुराण - 46.213]], </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_60#517|हरिवंशपुराण - 60.517-518]], </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 4. 85, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 3. 71, 106-131 </span>यह अपने पूर्वभव में पुरूरवा भील था । मुनिराज से अणुव्रत ग्रहण कर मरण करने से सौधर्म स्वर्ग में उत्पन्न हुआ । वहाँ से चयकर यह भरत चक्रवर्ती का मरीचि नामक पुत्र हुआ । इसने मिथ्यामार्ग चलाया था । इसके बाद यह चिरकाल तक अनेक गतियों में भ्रमण करता रहा । पश्चात् राजगृह नगर के राजा विश्वभूति का पुत्र विश्वनंदी हुआ । इसके पश्चात् महाशुक्र स्वर्ग मे देव और तत्पश्चात् त्रिपृष्ठ की पर्याय में नारायण हुआ । आगामी दसवें भव में यही तीर्थंकर महावीर हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 57.72, 82 , 62. 85-90, 74.203-204, 241-260, 76 534-543 </span></p> | ||
<p id="2">(2) आगामी उत्सर्पिणी काल का आठवाँ नारायण । <span class="GRef"> महापुराण 76.489, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 567 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) आगामी उत्सर्पिणी काल का आठवाँ नारायण । <span class="GRef"> महापुराण 76.489, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_60#567|हरिवंशपुराण - 60.567]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:10, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
पुराणकोष से
(1) पोदनपुर के महाराजा प्रजापति तथा महारानी मृगावती का पुत्र― प्रथम नारायण । यह राजा की प्रथम रानी जयावती के पुत्र विजय बलभद्र का भाई था और तीर्थंकर श्रेयांसनाथ के तीर्थ में हुआ था महापुराण 57.84-85, 62.90, पद्मपुराण - 20.218-288, हरिवंशपुराण - 53.36, 60.288, पांडवपुराण 4.41-44, वीरवर्द्धमान चरित्र 3. 61-67 इसका रथनूपुर नगर के राजा विद्याधर ज्वलनजटी की पुत्री स्वयंप्रभा से विवाह हुआ था । इसने ज्वलनजटी से सिंह एवं गरुड़वाहिनी विद्याएँ प्राप्त की थी । इसकी शारीरिक अवगाहना अस्सी धनुष और आयु चौरासी लाख वर्ष थी । ये दोनों भाई अलका नगरी के राजा विद्याधर मयूरग्रीव के पुत्र प्रतिनारायण अश्वग्रीव को मारकर तीन खंड पृथ्वी के स्वामी हुए थे । सब मिलाकर सोलह हजार मुकुटबद्ध राजा, विद्याधर और व्यंतर देव इसके अधीन थे । धनुष, शंख, चक्र, दंड, असि, शक्ति और गदा ये इसके सात रत्न थे । इसकी सोलह हजार रानियाँ थीं । स्वयंप्रभा इनकी पटरानी थी । इससे दो पुत्र-विजय और विजयभद्र और एक पुत्री ज्योतिप्रभा हुई । आरंभ की अधिकता के कारण रौद्रध्यान से मरकर यह सातवें नरक गया था । महापुराण 57.89-95, 62.25-30, 43-44, 111-112, पद्मपुराण - 46.213, हरिवंशपुराण - 60.517-518, पांडवपुराण 4. 85, वीरवर्द्धमान चरित्र 3. 71, 106-131 यह अपने पूर्वभव में पुरूरवा भील था । मुनिराज से अणुव्रत ग्रहण कर मरण करने से सौधर्म स्वर्ग में उत्पन्न हुआ । वहाँ से चयकर यह भरत चक्रवर्ती का मरीचि नामक पुत्र हुआ । इसने मिथ्यामार्ग चलाया था । इसके बाद यह चिरकाल तक अनेक गतियों में भ्रमण करता रहा । पश्चात् राजगृह नगर के राजा विश्वभूति का पुत्र विश्वनंदी हुआ । इसके पश्चात् महाशुक्र स्वर्ग मे देव और तत्पश्चात् त्रिपृष्ठ की पर्याय में नारायण हुआ । आगामी दसवें भव में यही तीर्थंकर महावीर हुआ । महापुराण 57.72, 82 , 62. 85-90, 74.203-204, 241-260, 76 534-543
(2) आगामी उत्सर्पिणी काल का आठवाँ नारायण । महापुराण 76.489, हरिवंशपुराण - 60.567
(3) तीर्थंकर श्रेयांसनाथ का मुख्य प्रश्नकर्त्ता । महापुराण 76.530