भरतक्षेत्र: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> जंबूद्वीप का प्रमुख क्षेत्र । यह छ: खंडों में विभक्त है । इनमें पाँच म्लेच्छ खंड तथा एक आर्यखंड है । यह लवणसमुद्र तथा हिमवान् पर्वत के मध्य में स्थित है । यहाँ चक्रवर्ती के दस प्रकार के भोग, तीर्थंकरों का ऐश्वर्य और अघातिया कर्मों के क्षय से मोक्ष भी प्राप्त होता है । यहाँ ऐरावत क्षेत्र के समान वृद्धि और ह्रास के द्वारा परिवर्तन होता रहता है । इसके ठीक मध्य में पूर्व से पश्चिम तक लंबा विजयार्ध पर्वत है । इसकी दक्षिण दिशा में जिन प्रतिमाओं से युक्त एक राक्षस द्वीप है । वृषभदेव के पुत्र भरतेश के नाम पर इसका भरतक्षेत्र नाम प्रसिद्ध हुआ । इसका अपर नाम भारत है । <span class="GRef"> महापुराण 62.16-20, 63. 191-193, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_3#43|पद्मपुराण - 3.43]], 4.59, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.13 </span>देखें [[ भारत ]]</p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> जंबूद्वीप का प्रमुख क्षेत्र । यह छ: खंडों में विभक्त है । इनमें पाँच म्लेच्छ खंड तथा एक आर्यखंड है । यह लवणसमुद्र तथा हिमवान् पर्वत के मध्य में स्थित है । यहाँ चक्रवर्ती के दस प्रकार के भोग, तीर्थंकरों का ऐश्वर्य और अघातिया कर्मों के क्षय से मोक्ष भी प्राप्त होता है । यहाँ ऐरावत क्षेत्र के समान वृद्धि और ह्रास के द्वारा परिवर्तन होता रहता है । इसके ठीक मध्य में पूर्व से पश्चिम तक लंबा विजयार्ध पर्वत है । इसकी दक्षिण दिशा में जिन प्रतिमाओं से युक्त एक राक्षस द्वीप है । वृषभदेव के पुत्र भरतेश के नाम पर इसका भरतक्षेत्र नाम प्रसिद्ध हुआ । इसका अपर नाम भारत है । <span class="GRef"> महापुराण 62.16-20, 63. 191-193, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_3#43|पद्मपुराण - 3.43]], 4.59, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#13|हरिवंशपुराण - 5.13]] </span>देखें [[ भारत ]]</p> | ||
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Latest revision as of 15:15, 27 November 2023
जंबूद्वीप का प्रमुख क्षेत्र । यह छ: खंडों में विभक्त है । इनमें पाँच म्लेच्छ खंड तथा एक आर्यखंड है । यह लवणसमुद्र तथा हिमवान् पर्वत के मध्य में स्थित है । यहाँ चक्रवर्ती के दस प्रकार के भोग, तीर्थंकरों का ऐश्वर्य और अघातिया कर्मों के क्षय से मोक्ष भी प्राप्त होता है । यहाँ ऐरावत क्षेत्र के समान वृद्धि और ह्रास के द्वारा परिवर्तन होता रहता है । इसके ठीक मध्य में पूर्व से पश्चिम तक लंबा विजयार्ध पर्वत है । इसकी दक्षिण दिशा में जिन प्रतिमाओं से युक्त एक राक्षस द्वीप है । वृषभदेव के पुत्र भरतेश के नाम पर इसका भरतक्षेत्र नाम प्रसिद्ध हुआ । इसका अपर नाम भारत है । महापुराण 62.16-20, 63. 191-193, पद्मपुराण - 3.43, 4.59, हरिवंशपुराण - 5.13 देखें भारत