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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) समवसरण के सप्तपर्ण वन की एक वापी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 57.33 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) समवसरण के सप्तपर्ण वन की एक वापी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_57#33|हरिवंशपुराण - 57.33]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) रुचकगिरि की ऐशान दिशा में स्थित रत्नकूट की एक देवी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.725 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) रुचकगिरि की ऐशान दिशा में स्थित रत्नकूट की एक देवी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#725|हरिवंशपुराण - 5.725]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) अपरविदेहस्थ वप्रक्षेत्र की प्रधान नगरी । <span class="GRef"> महापुराण 63. 208-216, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.263 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) अपरविदेहस्थ वप्रक्षेत्र की प्रधान नगरी । <span class="GRef"> महापुराण 63. 208-216, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#263|हरिवंशपुराण - 5.263]] </span></p> | ||
<p id="4">(4) भरतक्षेत्र की उज्जयिनी नगरी के राजा की रानी । इसकी विनयश्री पुत्री थी जो हस्तिनापुर के राजा से विवाही गयी थी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.105-106 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) भरतक्षेत्र की उज्जयिनी नगरी के राजा की रानी । इसकी विनयश्री पुत्री थी जो हस्तिनापुर के राजा से विवाही गयी थी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_60#105|हरिवंशपुराण - 60.105-106]] </span></p> | ||
<p id="5">(5) रुचकवरगिरि की पूर्वदिशा में विद्यमान आठ कूटों में प्रथम वैडूर्यकूट की दिक्कुमारी देवी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.705 </span></p> | <p id="5" class="HindiText">(5) रुचकवरगिरि की पूर्वदिशा में विद्यमान आठ कूटों में प्रथम वैडूर्यकूट की दिक्कुमारी देवी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#705|हरिवंशपुराण - 5.705]] </span></p> | ||
<p id="6">(6) नंदीश्वर द्वीप की दक्षिणदिशा में स्थित अंजनगिरि की पूर्व दिशा में स्थित एक वापी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.660 </span></p> | <p id="6" class="HindiText">(6) नंदीश्वर द्वीप की दक्षिणदिशा में स्थित अंजनगिरि की पूर्व दिशा में स्थित एक वापी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#660|हरिवंशपुराण - 5.660]] </span></p> | ||
<p id="7">(7) एक यादव-कन्या । इसे पांडव-नकुल ने विवाहा था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 47. 18, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 16.62 </span></p> | <p id="7" class="HindiText">(7) एक यादव-कन्या । इसे पांडव-नकुल ने विवाहा था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_47#18|हरिवंशपुराण - 47.18]], </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 16.62 </span></p> | ||
<p id="8">(8) विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी की बत्तीसवीं नगरी । <span class="GRef"> महापुराण 19.50, 53 </span></p> | <p id="8" class="HindiText">(8) विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी की बत्तीसवीं नगरी । <span class="GRef"> महापुराण 19.50, 53 </span></p> | ||
<p id="9">(9) जंबूद्वीप के खगपुर नगर के इक्ष्वाकुवंशी राजा सिंहसेन की रानी । यह सुदर्शन बलभद्र की जननी थी । <span class="GRef"> महापुराण 61.70 </span></p> | <p id="9" class="HindiText">(9) जंबूद्वीप के खगपुर नगर के इक्ष्वाकुवंशी राजा सिंहसेन की रानी । यह सुदर्शन बलभद्र की जननी थी । <span class="GRef"> महापुराण 61.70 </span></p> | ||
<p id="10">(10) एक शिविका । तीर्थंकर कुंथुनाथ इसी में बैठकर दीक्षार्थ बन गये थे । <span class="GRef"> महापुराण 64.38 </span></p> | <p id="10">(10) एक शिविका । तीर्थंकर कुंथुनाथ इसी में बैठकर दीक्षार्थ बन गये थे । <span class="GRef"> महापुराण 64.38 </span></p> | ||
<p id="11">(11) जंबूद्वीप के पश्चिम विदेहक्षेत्र में पद्म देश में स्थित अश्वपुर नगर के राजा वज्रवीर्य की रानी । यह वज्रनाभि की जननी थी । <span class="GRef"> महापुराण 73. 31-32 </span></p> | <p id="11">(11) जंबूद्वीप के पश्चिम विदेहक्षेत्र में पद्म देश में स्थित अश्वपुर नगर के राजा वज्रवीर्य की रानी । यह वज्रनाभि की जननी थी । <span class="GRef"> महापुराण 73. 31-32 </span></p> |
Latest revision as of 15:21, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- अपर विदेहस्थ व प्रक्षेत्र की प्रधान नगरी।–देखें लोक - 5.2।
- रुचक पर्वत निवासिनी दिक्कुमारी–देखें लोक - 5.13।
- भगवान् मल्लिनाथ की शासक यक्षिणी।–देखें तीर्थंकर - 5.3।
- नंदीश्वरद्वीप की दक्षिण वापी–देखें लोक - 5.11।
पुराणकोष से
(1) समवसरण के सप्तपर्ण वन की एक वापी । हरिवंशपुराण - 57.33
(2) रुचकगिरि की ऐशान दिशा में स्थित रत्नकूट की एक देवी । हरिवंशपुराण - 5.725
(3) अपरविदेहस्थ वप्रक्षेत्र की प्रधान नगरी । महापुराण 63. 208-216, हरिवंशपुराण - 5.263
(4) भरतक्षेत्र की उज्जयिनी नगरी के राजा की रानी । इसकी विनयश्री पुत्री थी जो हस्तिनापुर के राजा से विवाही गयी थी । हरिवंशपुराण - 60.105-106
(5) रुचकवरगिरि की पूर्वदिशा में विद्यमान आठ कूटों में प्रथम वैडूर्यकूट की दिक्कुमारी देवी । हरिवंशपुराण - 5.705
(6) नंदीश्वर द्वीप की दक्षिणदिशा में स्थित अंजनगिरि की पूर्व दिशा में स्थित एक वापी । हरिवंशपुराण - 5.660
(7) एक यादव-कन्या । इसे पांडव-नकुल ने विवाहा था । हरिवंशपुराण - 47.18, पांडवपुराण 16.62
(8) विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी की बत्तीसवीं नगरी । महापुराण 19.50, 53
(9) जंबूद्वीप के खगपुर नगर के इक्ष्वाकुवंशी राजा सिंहसेन की रानी । यह सुदर्शन बलभद्र की जननी थी । महापुराण 61.70
(10) एक शिविका । तीर्थंकर कुंथुनाथ इसी में बैठकर दीक्षार्थ बन गये थे । महापुराण 64.38
(11) जंबूद्वीप के पश्चिम विदेहक्षेत्र में पद्म देश में स्थित अश्वपुर नगर के राजा वज्रवीर्य की रानी । यह वज्रनाभि की जननी थी । महापुराण 73. 31-32
(12) जंबूद्वीप के हेमांगद देश में राजपुर नगर के राजा सत्यंधर की रानी । राजा सत्यंधर के मंत्री काष्ठांगारिक द्वारा मारे जाने के पूर्व ही यह गर्भावस्था में गरुडयंत्र पर बैठाकर उड़ा दी गयी थी । यंत्र श्मशान में नीचे आया । यह श्मशान में रही और श्मशान में ही इसके एक पुत्र हुआ । इसने लालन-पालन के लिए अपना पुत्र गंधोत्कट सेठ को दे दिया था । गंधोत्कट ने पुत्र का नाम जीवंधर रखा था । इसके पश्चात् यह दंडकारंय के एक आश्रम में रहने लगी थी । पुत्र को राज्य प्राप्त होने के पश्चात् इसने चंदना आर्या के समीप उत्कृष्ट संयम धारण कर लिया था । महापुराण 75.188-189, 221-228, 242-245, 250-251, 683-684 देखें जीवंधर
(13) अपराजित बलभद्र की रानी । सुमति इसकी पुत्री थी । महापुराण 63. 2-4
(14) पोदनपुर के राजा व्यानंद और रानी अंभोजमाला की पुत्री । यह राजा जितशत्रु की रानी तथा तीर्थंकर अजितनाथ की जननी थी । इसका अपर नाम विजयसेन था । महापुराण 48.19, पद्मपुराण - 5.60-63
(15) एक विद्या । यह रावण को प्राप्त थी । पद्मपुराण - 7.330-332
(16) छठे बलभद्र नंदिमित्र की जननी । पद्मपुराण - 20.238-239