वीर्य: Difference between revisions
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Revision as of 15:25, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- वीर्य
सर्वार्थसिद्धि/6/6/323/12 द्रव्यस्य स्वशक्तिविशेषो वीर्यम्। = द्रव्य की अपनी शक्ति विशेष वीर्य है। ( राजवार्तिक/6/6/6/ 512/7 )।
धवला 13/5, 5, 138/390/3 वीर्यं शक्तिरित्यर्थः। = वीर्य का अर्थ शक्ति है।
मोक्ष पंचाशत/47 आत्मनो निर्विकारस्य कृतकृत्यत्वधीश्च या। उत्साहो वीर्यमिति तत्कीर्तितं मुनिपुंगवैः।47। = निर्विकार आत्मा का जो उत्साह या कृतकृत्यत्वरूप बुद्धि, उसे ही मुनिजन वीर्य कहते हैं।
समयसार / आत्मख्याति/ परि./शक्ति नं.6 स्वरूपनिर्वर्तनसामर्थ्यरूपा वीर्यशक्तिः। = स्वरूप (आत्मस्वरूप की) रचना की सामर्थ्य रूप वीर्य शक्ति है।
- वीर्य के भेद
नयचक्र बृहद्/14 की टिप्पणी-क्षयोपशमिकी शक्तिः क्षायिकीं चेति शक्तेर्द्वौ भेदौ। = क्षायोपशमिकी व क्षायिकी के भेद से शक्ति दो प्रकार है।
- क्षायिक वीर्य का लक्षण
सर्वार्थसिद्धि/2/4/154/10 वीर्यांतरायस्य कर्मणोऽत्यंतक्षयादाविर्भूतमनंतवीर्यं क्षयिकम्। = वीर्यांतराय कर्म के अत्यंत क्षय से क्षायिक अनंत वीर्य प्रगट होता है। ( राजवार्तिक/2/4/6/106/9 )।
राजवार्तिक/2/4/7/154/15 केवलज्ञानरूपेण अनंतवीर्यवृति। = सिद्धभगवान् में केवलज्ञानरूप से अनंत वीर्य की वृत्ति है।
परमात्मप्रकाश टीका/1/61/61/12 केवलज्ञानविषये अनंतपरिच्छित्तिशक्तिरूपमनंतवीर्यं भण्यते। = केवलज्ञान के विषय में अनंत पदार्थों को जानने की जो शक्ति है वही अनंतवीर्य है। ( द्रव्यसंग्रह टीका/14/42/11 )।
- वीर्यगुण जीव व अजीव दोनों में होता है
गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/16/11/10 वीर्यं तु जीवाजीवगतमिति। = वीर्य जीव तथा अजीव दोनों में पाया जाता है।
- वीर्य सर्व गुणों का सहकारी है
द्रव्यसंग्रह टीका/5/15/7 छद्मस्थानां वीर्यांतरायक्षयोपशमः केवलिनां तु निरवशेषक्षयो ज्ञानचारित्राद्युत्फ्त्तौ सहकारी सर्वत्र ज्ञातव्यः। = छद्मस्थानों के तो वीर्यांतराय का क्षयोपशम और केवलियों के उसका सर्वथा क्षय ज्ञान चारित्र आदि की उत्पत्ति में सर्वत्र सहकारी कारण है।
- सिद्धों में अनंत वीर्य क्या–देखें दान - 2।
पुराणकोष से
(1) कुरुवंश का एक राजा । इसे राजा विचित्र से राज्य मिला था । हरिवंशपुराण - 45.27
(2) शक्ति । इससे भयभीत प्राणियों की रक्षा की जाती है । पद्मपुराण - 97.37