संक्रमण: Difference between revisions
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<li id="1.4">[[संक्रमण सामान्य का लक्षण#1.4 | सम्यक्त्व व मिश्र प्रकृति की उद्वेलना में चार संक्रमणों का क्रम।]]</li> | <li id="1.4">[[संक्रमण सामान्य का लक्षण#1.4 | सम्यक्त्व व मिश्र प्रकृति की उद्वेलना में चार संक्रमणों का क्रम।]]</li> | ||
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<ul><li>दर्शन मोह में अबध्यमान का भी संक्रमण होता है। - | <ul><li>दर्शन मोह में अबध्यमान का भी संक्रमण होता है। - देखें [[ संक्रमण#3.1 | संक्रमण - 3.1]]।</li></ul> | ||
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<li id="3.2">[[प्रकृतियों में संक्रमण सम्बन्धी कुछ नियम व शंका#3.2 | मूल प्रकृतियों में परस्पर संक्रमण नहीं होता।]]</li> | <li id="3.2">[[प्रकृतियों में संक्रमण सम्बन्धी कुछ नियम व शंका#3.2 | मूल प्रकृतियों में परस्पर संक्रमण नहीं होता।]]</li> | ||
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<ul><li>स्वजाति उत्तर प्रकृतियों में संक्रमण होता है। - | <ul><li>स्वजाति उत्तर प्रकृतियों में संक्रमण होता है। - देखें [[ संक्रमण#3.2 | संक्रमण - 3.2]]।</li></ul> | ||
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<li id="3.3">[[प्रकृतियों में संक्रमण सम्बन्धी कुछ नियम व शंका#3.3 | उत्तर प्रकृतियों में संक्रमण सम्बन्धी कुछ अपवाद।]]</li> | <li id="3.3">[[प्रकृतियों में संक्रमण सम्बन्धी कुछ नियम व शंका#3.3 | उत्तर प्रकृतियों में संक्रमण सम्बन्धी कुछ अपवाद।]]</li> | ||
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<li>चारों आयुओं में परस्पर संक्रमण सम्भव नहीं।। - | <li>चारों आयुओं में परस्पर संक्रमण सम्भव नहीं।। - देखें [[ संक्रमण#3.3 | संक्रमण - 3.3]]।</li> | ||
<li>दर्शन चारित्र मोह में परस्पर संक्रमण सम्भव नहीं।। - | <li>दर्शन चारित्र मोह में परस्पर संक्रमण सम्भव नहीं।। - देखें [[ संक्रमण#3.3 | संक्रमण - 3.3]]।</li> | ||
<li>कषाय नोकषाय में परस्पर संक्रमण सम्भव है।। - | <li>कषाय नोकषाय में परस्पर संक्रमण सम्भव है।। - देखें [[ संक्रमण#3.3 | संक्रमण - 3.3]]।</li> | ||
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<li>प्रकृतियों के संक्रमण व संक्रामकों सम्बन्धी काल अन्तर आदि प्ररूपणाएँ। - | <li>प्रकृतियों के संक्रमण व संक्रामकों सम्बन्धी काल अन्तर आदि प्ररूपणाएँ। -देखें [[ वह वह नाम ]]।</li> | ||
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<li id="4.1">[[उद्वेलना संक्रमण निर्देश#4.1 | उद्वेलना संक्रमण का लक्षण]]</li> | <li id="4.1">[[उद्वेलना संक्रमण निर्देश#4.1 | उद्वेलना संक्रमण का लक्षण]]</li> | ||
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<ul><li>उद्वेलना संक्रमण द्विचरम काण्डक पर्यन्त होता है। - | <ul><li>उद्वेलना संक्रमण द्विचरम काण्डक पर्यन्त होता है। - देखें [[ संक्रमण#1.4 | संक्रमण - 1.4]]।</li></ul> | ||
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<li id="4.2">[[उद्वेलना संक्रमण निर्देश#4.2 | मार्गणा स्थानों में उद्वेलना योग्य प्रकृतियाँ।]]</li> | <li id="4.2">[[उद्वेलना संक्रमण निर्देश#4.2 | मार्गणा स्थानों में उद्वेलना योग्य प्रकृतियाँ।]]</li> | ||
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<li>सम्यक व मिश्र प्रकृति की उद्वेलना में चार संक्रमणों का क्रम। - | <li>सम्यक व मिश्र प्रकृति की उद्वेलना में चार संक्रमणों का क्रम। - देखें [[ संक्रमण#1.4 | संक्रमण - 1.4]]।</li> | ||
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<li id="5.1">[[विघ्यात संक्रमण निर्देश#5.1 | विघ्यात संक्रमण का लक्षण।]]</li> | <li id="5.1">[[विघ्यात संक्रमण निर्देश#5.1 | विघ्यात संक्रमण का लक्षण।]]</li> | ||
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<ul><li>काण्डकघात व अपवर्तनाघात में अन्तर। - | <ul><li>काण्डकघात व अपवर्तनाघात में अन्तर। - देखें [[ अपकर्षण#4.6 | अपकर्षण - 4.6]]।</li></ul> | ||
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<li id="6.2">[[अध:प्रवृत्त संक्रमण निर्देश#6.2 | यह नियम से घातिरूप होता है।]]</li> | <li id="6.2">[[अध:प्रवृत्त संक्रमण निर्देश#6.2 | यह नियम से घातिरूप होता है।]]</li> | ||
<li id="6.3">[[अध:प्रवृत्त संक्रमण निर्देश#6.3 | मिथ्यात्व प्रकृति का नहीं होता।]]</li> | <li id="6.3">[[अध:प्रवृत्त संक्रमण निर्देश#6.3 | मिथ्यात्व प्रकृति का नहीं होता।]]</li> | ||
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<ul><li>शेष प्रकृतियों का व्युच्छित्ति पर्यन्त होता है। - | <ul><li>शेष प्रकृतियों का व्युच्छित्ति पर्यन्त होता है। - देखें [[ संक्रमण#1 | संक्रमण - 1]]/3।</li></ul> | ||
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<li id="6.4">[[अध:प्रवृत्त संक्रमण निर्देश#6.4 | सम्यक् व मिश्र प्रकृति के अध:प्रवृत्त संक्रमण योग्य काल।]]</li> | <li id="6.4">[[अध:प्रवृत्त संक्रमण निर्देश#6.4 | सम्यक् व मिश्र प्रकृति के अध:प्रवृत्त संक्रमण योग्य काल।]]</li> | ||
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<li id="7.1">[[गुण संक्रमण निर्देश#7.1 | गुण संक्रमण का लक्षण।]]</li> | <li id="7.1">[[गुण संक्रमण निर्देश#7.1 | गुण संक्रमण का लक्षण।]]</li> | ||
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<ul><li>मिथ्यात्व के त्रिधाकरण में गुण संक्रमण। - | <ul><li>मिथ्यात्व के त्रिधाकरण में गुण संक्रमण। - देखें [[ उपशम#2 | उपशम - 2]]।</li></ul> | ||
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<li id="7.3">[[गुण संक्रमण निर्देश#7.3 | गुण संक्रमण योग्य स्थान।]]</li> | <li id="7.3">[[गुण संक्रमण निर्देश#7.3 | गुण संक्रमण योग्य स्थान।]]</li> | ||
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<li id="8.11">[[गुणश्रेणी निर्देश#8.11 | गुणश्रेणि निक्षेपण विधान।]]</li> | <li id="8.11">[[गुणश्रेणी निर्देश#8.11 | गुणश्रेणि निक्षेपण विधान।]]</li> | ||
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<ul><li>गुणश्रेणि निर्जरा का | <ul><li>गुणश्रेणि निर्जरा का 11 स्थानीय अल्पबहुत्व। - देखें [[ अल्पबहुत्व#3.10 | अल्पबहुत्व - 3.10]]।</li></ul> | ||
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<li id="8.12">[[गुणश्रेणी निर्देश#8.12 | गुणश्रेणि निर्जरा विधान।]]</li> | <li id="8.12">[[गुणश्रेणी निर्देश#8.12 | गुणश्रेणि निर्जरा विधान।]]</li> | ||
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<li id="9.1">[[सर्व संक्रमण निर्देश#9.1 | सर्व संक्रमण का लक्षण।]]</li> | <li id="9.1">[[सर्व संक्रमण निर्देश#9.1 | सर्व संक्रमण का लक्षण।]]</li> | ||
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<ul><li>चरम फालिका सर्वसंक्रमण ही होता है। - | <ul><li>चरम फालिका सर्वसंक्रमण ही होता है। - देखें [[ संक्रमण#1 | संक्रमण - 1]]/3/4।</li></ul> | ||
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<li id="10"><strong>[[आनुपूर्वी व स्तिवुक संक्रमण निर्देश]]</strong> | <li id="10"><strong>[[आनुपूर्वी व स्तिवुक संक्रमण निर्देश]]</strong> | ||
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<li id="10.2">[[आनुपूर्वी व स्तिवुक संक्रमण निर्देश#10.2 | स्तिवुक संक्रमण का लक्षण।]]</li> | <li id="10.2">[[आनुपूर्वी व स्तिवुक संक्रमण निर्देश#10.2 | स्तिवुक संक्रमण का लक्षण।]]</li> | ||
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<ul><li>अनुदय प्रकृतियाँ स्तिवुक संक्रमण द्वारा उदय में आती हैं। - | <ul><li>अनुदय प्रकृतियाँ स्तिवुक संक्रमण द्वारा उदय में आती हैं। - देखें [[ संक्रमण#3.6 | संक्रमण - 3.6]]।</li></ul> | ||
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Revision as of 21:49, 5 July 2020
जीव के परिणामों के वश से कर्म प्रकृति का बदलकर अन्य प्रकृति रूप हो जाना संक्रमण है। इसके उद्वेलना आदि अनेकों भेद हैं। इनका नाम वास्तव में संक्रमण भागाहार है। उपचार से इनको संक्रमण कहने में आता है। अत: इनमें केवल परिणामों की उत्कृष्टता आदि ही के प्रति संकेत किया गया है। ऊँचे परिणामों से अधिक द्रव्य प्रतिसमय संक्रमित होने के कारण उसका भागाहार अल्प होना चाहिए। और नीचे परिणामों से कम द्रव्य संक्रमित होने के कारण उसका भागाहार अधिक होना चाहिए। यही बात इन सब भेदों के लक्षणों पर से जाननी चाहिए। उद्वेलना विघ्यात व अध:प्रवृत्त इन तीन भेदों में भागहानि क्रम से द्रव्य संक्रमाया जाता है, गुणश्रेणी संक्रमण में गुणश्रेणी रूप से और सर्वसंक्रमण में अन्त का बचा हुआ सर्व द्रव्य युगपत् संक्रमा दिया जाता है।
- संक्रमण सामान्य का लक्षण
- संक्रमण सामान्य का लक्षण।
- संक्रमण के भेद।
- पाँचों संक्रमणों का क्रम।
- सम्यक्त्व व मिश्र प्रकृति की उद्वेलना में चार संक्रमणों का क्रम।
- विसंयोजना। - देखें विसंयोजना ।
- संक्रमण योग्य प्रकृतियाँ
- केवल उद्वेलना योग्य प्रकृतियाँ।
- केवल विघ्यात योग्य प्रकृतियाँ।
- केवल अध:प्रवृत्त योग्य प्रकृतियाँ।
- केवल गुणसंक्रमण योग्य प्रकृतियाँ।
- केवल सर्व संक्रमण योग्य प्रकृतियाँ।
- विघ्यात व अध:प्रवृत्त इन दो के योग्य।
- अध:प्रवृत्त व गुण इन दो के योग्य।
- अध:प्रवृत्त और सर्व इन दो के योग्य।
- विघ्यात अध:प्रवृत्त व गुण इन तीन के योग्य।
- अध:प्रवृत्त गुण व सर्व इन तीन के योग्य।
- विघ्यातगुण व सर्व इन तीन के योग्य।
- उद्वेलना के बिना चार के योग्य।
- विघ्यात के बिना चार के योग्य।
- पाँचों के योग्य।
- प्रकृतियों में संक्रमण सम्बन्धी कुछ नियम व शंका
- दर्शन मोह में अबध्यमान का भी संक्रमण होता है। - देखें संक्रमण - 3.1।
- स्वजाति उत्तर प्रकृतियों में संक्रमण होता है। - देखें संक्रमण - 3.2।
- चारों आयुओं में परस्पर संक्रमण सम्भव नहीं।। - देखें संक्रमण - 3.3।
- दर्शन चारित्र मोह में परस्पर संक्रमण सम्भव नहीं।। - देखें संक्रमण - 3.3।
- कषाय नोकषाय में परस्पर संक्रमण सम्भव है।। - देखें संक्रमण - 3.3।
- उद्वेलना संक्रमण निर्देश
- उद्वेलना संक्रमण द्विचरम काण्डक पर्यन्त होता है। - देखें संक्रमण - 1.4।
- मार्गणा स्थानों में उद्वेलना योग्य प्रकृतियाँ।
- मिथ्यात्व व मिश्र प्रकृति की उद्वेलना योग्य काल।
- यह मिथ्यात्व अवस्था में होता है।
- सम्यक व मिश्र प्रकृति की उद्वेलना में चार संक्रमणों का क्रम। - देखें संक्रमण - 1.4।
- यह काण्डक घात रूप से होता है। - देखें संक्रमण - 6.2।
- विघ्यात संक्रमण निर्देश
- बन्ध व्युच्छित्ति होने के पश्चात् उन प्रकृतियों का 4-7 गुणस्थानों में विघ्यात संक्रमण होता है। - देखें संक्रमण - 1।
- अध:प्रवृत्त संक्रमण निर्देश
- काण्डकघात व अपवर्तनाघात में अन्तर। - देखें अपकर्षण - 4.6।
- शेष प्रकृतियों का व्युच्छित्ति पर्यन्त होता है। - देखें संक्रमण - 1/3।
- गुण संक्रमण निर्देश
- गुण संक्रमण का स्वामित्व।। - देखें संक्रमण - 1/3।
- मिथ्यात्व के त्रिधाकरण में गुण संक्रमण। - देखें उपशम - 2।
- गुणश्रेणी निर्देश
- गुणश्रेणी विधान में तीन पर्वों का निर्देश।
- गुणश्रेणी निर्जरा के आवश्यक अधिकार।
- गुणश्रेणी का लक्षण।
- गुणश्रेणी निर्जरा का लक्षण।
- गुणश्रेणि शीर्ष का लक्षण।
- गुणश्रेणि आयाम का लक्षण।
- गलितावशेष गुणश्रेणि आयाम का लक्षण।
- अवस्थिति गुणश्रेणि आयाम का लक्षण।
- गुणश्रेणि आयामों का यन्त्र।
- अन्तर स्थिति व द्वितीय स्थिति का लक्षण।
- गुणश्रेणि निक्षेपण विधान।
- गुणश्रेणि निर्जरा का 11 स्थानीय अल्पबहुत्व। - देखें अल्पबहुत्व - 3.10।
- सर्व संक्रमण निर्देश
- चरम फालिका सर्वसंक्रमण ही होता है। - देखें संक्रमण - 1/3/4।
- आनुपूर्वी व स्तिवुक संक्रमण निर्देश
- अनुदय प्रकृतियाँ स्तिवुक संक्रमण द्वारा उदय में आती हैं। - देखें संक्रमण - 3.6।