अरे जिया, जग धोखे की टाटी: Difference between revisions
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अरे जिया, जग धोखे की टाटी
झूठा उद्यम लोक करत है, जिसमें निशदिन घाटी ।।टेक. ।।
जान बूझके अन्ध बने हैं, आंखन बांधी पाटी ।।१ ।।अरे. ।।
निकल जायेंगे प्राण छिनकमें, पड़ी रहैगी माटी ।।२ ।।अरे. ।।
`दौलतराम' समझ मन अपने, दिल की खोल कपाटी ।।३ ।।अरे. ।।