कर रे! कर रे! कर रे!, तू आतम हित कर रे: Difference between revisions
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कर रे! कर रे! कर रे!, तू आतम हित कर रे
काल अनन्त गयो जग भ्रमतैं, भव भवके दुख हर रे।।कर रे ।।
लाख कोटि भव तपस्या करतैं, जितो कर्म तेरो जर रे ।
स्वास उस्वासमाहिं सो नासै, जब अनुभव चित धर रे ।।कर रे. ।।१ ।।
काहे कष्ट सहै बन माहीं, राग दोष परिहर रे ।
काज होय समभाव बिना नहिं, भावौ पचि पचि मर रे ।।कर रे. ।।२ ।।
लाख सीखकी सीख एक यह, आतम निज, पर पर रे ।
कोटि ग्रंथको सार यही है, `द्यानत' लख भव तर रे ।।कर रे. ।।१ ।।