सागरसेन: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) सहस्राम्र वन में आये एक मुनिराज । अरिष्टपुर नगर का राजा वासव इन्हीं से दीक्षित हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 71.400-402, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 76 </span></p> | <p id="1"> (1) सहस्राम्र वन में आये एक मुनिराज । अरिष्टपुर नगर का राजा वासव इन्हीं से दीक्षित हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 71.400-402, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 76 </span></p> | ||
<p id="2">(2) राजा वसु की वंश | <p id="2">(2) राजा वसु की वंश परंपरा में हुए राजाओं में राजा दीपन का पुत्र और राजा सुमित्र का पिता । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18.19 </span></p> | ||
<p id="3">(3) एक मुनि । पुरुरवा भील इन्हें मृग समझकर मारना चाहता था | <p id="3">(3) एक मुनि । पुरुरवा भील इन्हें मृग समझकर मारना चाहता था किंतु उसकी स्त्री ने ऐसा नहीं होने दिया था । पुरुरवा ने इनसे क्षमा मांगकर धर्मोपदेश सुना और मद्य-मांसादि का भक्षण तथा जीवघात त्यागकर समाधिपूर्वक देह त्याग की और सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 62. 86-88, 74. 14-22, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 2.18-38 </span></p> | ||
<p id="4">(4) एक विद्वान् । सिद्धार्थ नगर के राजा क्षेमंकर के देशभूषण और कुलभूषण दोनों पुत्रों ने इसी विद्वान् के पास अनेक कलाएँ सीखी थीं । <span class="GRef"> पद्मपुराण 39.158-161 </span></p> | <p id="4">(4) एक विद्वान् । सिद्धार्थ नगर के राजा क्षेमंकर के देशभूषण और कुलभूषण दोनों पुत्रों ने इसी विद्वान् के पास अनेक कलाएँ सीखी थीं । <span class="GRef"> पद्मपुराण 39.158-161 </span></p> | ||
<p id="5">(5) एक चारण ऋद्धिधारी मुनि । ये दमधर मुनि के नाथ मनोहर वन में तपस्या कर रहे थे । इन्होंने इसी वन में ही आहार लेने की प्रतिज्ञा की थी । विजय यात्रा के प्रसंग से वज्रजंघ वहाँ आया और उसने वन में ही आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये । <span class="GRef"> महापुराण 8.167-173 </span></p> | <p id="5">(5) एक चारण ऋद्धिधारी मुनि । ये दमधर मुनि के नाथ मनोहर वन में तपस्या कर रहे थे । इन्होंने इसी वन में ही आहार लेने की प्रतिज्ञा की थी । विजय यात्रा के प्रसंग से वज्रजंघ वहाँ आया और उसने वन में ही आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये । <span class="GRef"> महापुराण 8.167-173 </span></p> | ||
<p id="6">(6) विदेहक्षेत्र की | <p id="6">(6) विदेहक्षेत्र की पुंडरीकिणी नगरी का एक वैश्य । सेठ सर्वदयित के पिता की छोटी बहिन देवश्री इसकी पत्नी थी । इससे इसके दो पुत्र थे― सागरदत्त और समुद्रदत्त । एक पुत्री भी थी जिसका नाम समुद्रदत्ता था । <span class="GRef"> महापुराण 47.191, 195-196 </span></p> | ||
<p id="7">(7) धरणिनुषण पर्वत के प्रियंकर उद्यान में आये एक मुनिराज । आयु के | <p id="7">(7) धरणिनुषण पर्वत के प्रियंकर उद्यान में आये एक मुनिराज । आयु के अंत में संन्यासपूर्वक देह त्यागकर ये स्वर्ग गये । <span class="GRef"> महापुराण 76.220-221, 350 </span></p> | ||
Revision as of 16:38, 19 August 2020
(1) सहस्राम्र वन में आये एक मुनिराज । अरिष्टपुर नगर का राजा वासव इन्हीं से दीक्षित हुआ था । महापुराण 71.400-402, हरिवंशपुराण 60. 76
(2) राजा वसु की वंश परंपरा में हुए राजाओं में राजा दीपन का पुत्र और राजा सुमित्र का पिता । हरिवंशपुराण 18.19
(3) एक मुनि । पुरुरवा भील इन्हें मृग समझकर मारना चाहता था किंतु उसकी स्त्री ने ऐसा नहीं होने दिया था । पुरुरवा ने इनसे क्षमा मांगकर धर्मोपदेश सुना और मद्य-मांसादि का भक्षण तथा जीवघात त्यागकर समाधिपूर्वक देह त्याग की और सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ । महापुराण 62. 86-88, 74. 14-22, वीरवर्द्धमान चरित्र 2.18-38
(4) एक विद्वान् । सिद्धार्थ नगर के राजा क्षेमंकर के देशभूषण और कुलभूषण दोनों पुत्रों ने इसी विद्वान् के पास अनेक कलाएँ सीखी थीं । पद्मपुराण 39.158-161
(5) एक चारण ऋद्धिधारी मुनि । ये दमधर मुनि के नाथ मनोहर वन में तपस्या कर रहे थे । इन्होंने इसी वन में ही आहार लेने की प्रतिज्ञा की थी । विजय यात्रा के प्रसंग से वज्रजंघ वहाँ आया और उसने वन में ही आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये । महापुराण 8.167-173
(6) विदेहक्षेत्र की पुंडरीकिणी नगरी का एक वैश्य । सेठ सर्वदयित के पिता की छोटी बहिन देवश्री इसकी पत्नी थी । इससे इसके दो पुत्र थे― सागरदत्त और समुद्रदत्त । एक पुत्री भी थी जिसका नाम समुद्रदत्ता था । महापुराण 47.191, 195-196
(7) धरणिनुषण पर्वत के प्रियंकर उद्यान में आये एक मुनिराज । आयु के अंत में संन्यासपूर्वक देह त्यागकर ये स्वर्ग गये । महापुराण 76.220-221, 350