आवास: Difference between revisions
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[[तिलोयपण्णत्ति]] अधिकार संख्या ३/२३ दहसलदुमादीणं रम्माणं उवरि होंति आवासा। णागादिणं केसिं तियणिलया भावमेक्कमसुराणं ।।२३।। | [[तिलोयपण्णत्ति]] अधिकार संख्या ३/२३ दहसलदुमादीणं रम्माणं उवरि होंति आवासा। णागादिणं केसिं तियणिलया भावमेक्कमसुराणं ।।२३।।<br> | ||
= रमणीय तालाब, पर्वत और वृक्षादिकके ऊपर स्थित व्यन्तर आदिक देवोंके निवास स्थआनोंको आवास कहते हैं। | <p class="HindiSentence">= रमणीय तालाब, पर्वत और वृक्षादिकके ऊपर स्थित व्यन्तर आदिक देवोंके निवास स्थआनोंको आवास कहते हैं।</p> | ||
[[तिलोयपण्णत्ति]] अधिकार संख्या ६/७ रयणप्पहपुढवीए भवणाणिं दीवउदहि उवरिम्मि। भवण पुराणिं दहगिरिपहुदीणं उवरि आवासा ।।७।। | [[तिलोयपण्णत्ति]] अधिकार संख्या ६/७ रयणप्पहपुढवीए भवणाणिं दीवउदहि उवरिम्मि। भवण पुराणिं दहगिरिपहुदीणं उवरि आवासा ।।७।।<br> | ||
= रत्नप्रभा पृथिवीमें भवन, द्वीप समुद्रोंके ऊपर भवनपुर और द्रह एवं पर्वतादिकोंके ऊपर (व्यन्तरोंके) आवास होते हैं। | <p class="HindiSentence">= रत्नप्रभा पृथिवीमें भवन, द्वीप समुद्रोंके ऊपर भवनपुर और द्रह एवं पर्वतादिकोंके ऊपर (व्यन्तरोंके) आवास होते हैं।</p> | ||
[[धवला]] पुस्तक संख्या १४/५,६,९३/८६/६ अडरस्स अंतोट्ठियो कच्छउडभंडरंतोट्ठियवक्खारसमाणो आवासो णाम।...एवकेक्कम्हि आवासे ताओ असंखेज्जलोगमेत्ताओ होंति। एक्केक्कम्हि पुलवियाए जसंखेज्जलोगमेत्ताणि णिगोदसरीराणि। | [[धवला]] पुस्तक संख्या १४/५,६,९३/८६/६ अडरस्स अंतोट्ठियो कच्छउडभंडरंतोट्ठियवक्खारसमाणो आवासो णाम।...एवकेक्कम्हि आवासे ताओ असंखेज्जलोगमेत्ताओ होंति। एक्केक्कम्हि पुलवियाए जसंखेज्जलोगमेत्ताणि णिगोदसरीराणि।<br> | ||
= जो अण्डरके भीतर स्थित हैं तथा कच्छउडअण्डरके भीतर स्थित वक्खारके समान हैं उन्हें आवास कहते हैं।...एक एक आवासमें वे (पुलवियाँ-दे.पुलवि) असंख्यात् लोक प्रमाण होती हैं। तथा एक एक आवासकी अलग-अगल एक-एक पुलविमें असंख्यात लोक प्रमाण शरीर होते हैं- | <p class="HindiSentence">= जो अण्डरके भीतर स्थित हैं तथा कच्छउडअण्डरके भीतर स्थित वक्खारके समान हैं उन्हें आवास कहते हैं।...एक एक आवासमें वे (पुलवियाँ-दे.पुलवि) असंख्यात् लोक प्रमाण होती हैं। तथा एक एक आवासकी अलग-अगल एक-एक पुलविमें असंख्यात लोक प्रमाण शरीर होते हैं- </p> | ||
(विशेष | (विशेष <b>देखे </b>[[वनस्पति]] ३/७)<br> | ||
[[त्रिलोकसार]] गाथा संख्या २९४ वेंतरणिलयतियाणि य भवणपुरावासभवणणामाणि। दीव समुद्दे दहगिरितरुह्मि चित्तावणि म्हि कमे ।।२९४।। | [[त्रिलोकसार]] गाथा संख्या २९४ वेंतरणिलयतियाणि य भवणपुरावासभवणणामाणि। दीव समुद्दे दहगिरितरुह्मि चित्तावणि म्हि कमे ।।२९४।।<br> | ||
= भवनपुर, आवास अर भवन ए विंतरनिलयनिके तीन ही नाम है। तहाँ क्रम करि द्वीप समुद्रनिविषै भवनपुर पाईए है। बहुरि द्रह पर्वत वृक्ष इनविषै आवास पाईए हैं बहुरि चित्रपृथिवी विषैं नीचे भवन पाईए है। | <p class="HindiSentence">= भवनपुर, आवास अर भवन ए विंतरनिलयनिके तीन ही नाम है। तहाँ क्रम करि द्वीप समुद्रनिविषै भवनपुर पाईए है। बहुरि द्रह पर्वत वृक्ष इनविषै आवास पाईए हैं बहुरि चित्रपृथिवी विषैं नीचे भवन पाईए है।</p> | ||
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Revision as of 23:39, 8 May 2009
तिलोयपण्णत्ति अधिकार संख्या ३/२३ दहसलदुमादीणं रम्माणं उवरि होंति आवासा। णागादिणं केसिं तियणिलया भावमेक्कमसुराणं ।।२३।।
= रमणीय तालाब, पर्वत और वृक्षादिकके ऊपर स्थित व्यन्तर आदिक देवोंके निवास स्थआनोंको आवास कहते हैं।
तिलोयपण्णत्ति अधिकार संख्या ६/७ रयणप्पहपुढवीए भवणाणिं दीवउदहि उवरिम्मि। भवण पुराणिं दहगिरिपहुदीणं उवरि आवासा ।।७।।
= रत्नप्रभा पृथिवीमें भवन, द्वीप समुद्रोंके ऊपर भवनपुर और द्रह एवं पर्वतादिकोंके ऊपर (व्यन्तरोंके) आवास होते हैं।
धवला पुस्तक संख्या १४/५,६,९३/८६/६ अडरस्स अंतोट्ठियो कच्छउडभंडरंतोट्ठियवक्खारसमाणो आवासो णाम।...एवकेक्कम्हि आवासे ताओ असंखेज्जलोगमेत्ताओ होंति। एक्केक्कम्हि पुलवियाए जसंखेज्जलोगमेत्ताणि णिगोदसरीराणि।
= जो अण्डरके भीतर स्थित हैं तथा कच्छउडअण्डरके भीतर स्थित वक्खारके समान हैं उन्हें आवास कहते हैं।...एक एक आवासमें वे (पुलवियाँ-दे.पुलवि) असंख्यात् लोक प्रमाण होती हैं। तथा एक एक आवासकी अलग-अगल एक-एक पुलविमें असंख्यात लोक प्रमाण शरीर होते हैं-
(विशेष देखे वनस्पति ३/७)
त्रिलोकसार गाथा संख्या २९४ वेंतरणिलयतियाणि य भवणपुरावासभवणणामाणि। दीव समुद्दे दहगिरितरुह्मि चित्तावणि म्हि कमे ।।२९४।।
= भवनपुर, आवास अर भवन ए विंतरनिलयनिके तीन ही नाम है। तहाँ क्रम करि द्वीप समुद्रनिविषै भवनपुर पाईए है। बहुरि द्रह पर्वत वृक्ष इनविषै आवास पाईए हैं बहुरि चित्रपृथिवी विषैं नीचे भवन पाईए है।