आर्यिका: Difference between revisions
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< | <p>3. आर्यिकाको करने योग्य कार्य सामान्य - </p> | ||
<p | <p> मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 188-189 अण्णोण्णाणुकूलाओ अण्णोण्णहिरक्खणाभिजुत्ताओ। गयरोसवेरमाया सलज्जमज्जादकिरियाओ ॥188॥ अज्झयणे परियट्ठे सवणे कहणेतहाणुपेहाए। तवविणयसंजमेसु य अविरहिदुप ओगजुत्ताओ ॥189॥ अविकारवत्थवेसा जल्लमलविलित्तचत्तदेहाओ। धम्मकुलकत्तिदिक्खापडिसुद्धचरियाओ ॥190॥</p> | ||
<p | <p>= आर्यिका परस्परमें अनुकूल रहती है, ईर्ष्या भाव नहीं करती, आपसमें प्रतिपालनमें तत्पर रहती हैं, क्रोध, बैर, मायाचारी इन तीनोंसे रहति होती हैं। लोकपवादसे भय रूप लज्जा, परिणाम, न्याय मार्गमें प्रवर्तने रूप मर्यादा दोनों कुलके योग्य आचरण-इन गुणोंकर सहित होती है ॥188॥ शास्त्र पढनेमें, पढ़े शास्त्र के पाठ करनेमें, शास्त्र सुननेमें, श्रुतके चिंतवनमें अथवा अनित्यादि भावनाओंमें और तप, विनय और संयम इन सबमें तत्पर रहती है तथा ज्ञानाभ्यास शुभ योगमें युक्त रहती हैं ॥189॥ जिनके वस्त्र विकार रहित होते हैं, शरीरका आकार भी विकार रहित होता है, शरीर पसेव व मलकर लिप्त है तथा संस्कार (सजावट) रहित है। क्षमादि धर्म गुरु आदिकी सन्तान रूप कुल, यश, व्रत इनके समान जिनका शुद्ध आचरण है ऐसी आर्यिकाए होती हैं।</p> | ||
< | <p>4. आर्यिका को न करने योग्य कार्य</p> | ||
<p | <p> मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 193 रोदणण्हाण भोयणपयणं सुत्तं य छव्विहारंभे। विरदाण पादमक्खण धोवण गेयं च ण य कुज्जा ॥193॥</p> | ||
<p | <p>= आर्यिकाओंका अपनी वसतिकामें तथा अन्यके घरमें रोना नहीं चाहिए, बालकादिकोंको स्नान नहीं कराना। बालकादिकोंको जिमाना, रसोई करना, सूत कातना, सीना, असि, मसि आदि छः कर्म करना, संयमी जनोंके पैर धोना, साफ करना, राग पूर्वक गीत, इत्यादि क्रियाएँ नहीं करना चाहिए ॥193॥</p> | ||
< | <p>5. आर्यिकाके विहार सम्बन्धी</p> | ||
<p | <p> मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 192 ण य परगेहमकज्जे गच्छे कज्जे अवस्स गमणिज्जे। गणिणीमापुच्छित्ता संघाडेणेव गच्छेज्ज ॥192॥</p> | ||
<p | <p>= आर्यिकाओँको बिना प्रयोजन पराये स्थान पर नहीं जाना चाहिए। यदि अवश्य जाना हो तो भिक्षा आदि कालमें बड़ी आर्यिकाओंको पूछ कर अन्य आर्यिकाओंको साथ लेकर जाना चाहिए।</p> | ||
< | <p>6. आर्यिकाके अन्य पुरुष व साधुके संग रहने सम्बन्धी - देखें [[ संगित ]]।</p> | ||
< | <p>• आर्यिकाको नमस्कार करने सम्बन्धी - देखें [[ विनय#3 | विनय - 3]]।</p> | ||
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Revision as of 16:57, 10 June 2020
1. आर्यिका योग्य लिंग
- देखें लिंग - 1
2. आर्यिकाको महाव्रत कहना उपचार है
- देखें वेद - 7
3. आर्यिकाको करने योग्य कार्य सामान्य -
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 188-189 अण्णोण्णाणुकूलाओ अण्णोण्णहिरक्खणाभिजुत्ताओ। गयरोसवेरमाया सलज्जमज्जादकिरियाओ ॥188॥ अज्झयणे परियट्ठे सवणे कहणेतहाणुपेहाए। तवविणयसंजमेसु य अविरहिदुप ओगजुत्ताओ ॥189॥ अविकारवत्थवेसा जल्लमलविलित्तचत्तदेहाओ। धम्मकुलकत्तिदिक्खापडिसुद्धचरियाओ ॥190॥
= आर्यिका परस्परमें अनुकूल रहती है, ईर्ष्या भाव नहीं करती, आपसमें प्रतिपालनमें तत्पर रहती हैं, क्रोध, बैर, मायाचारी इन तीनोंसे रहति होती हैं। लोकपवादसे भय रूप लज्जा, परिणाम, न्याय मार्गमें प्रवर्तने रूप मर्यादा दोनों कुलके योग्य आचरण-इन गुणोंकर सहित होती है ॥188॥ शास्त्र पढनेमें, पढ़े शास्त्र के पाठ करनेमें, शास्त्र सुननेमें, श्रुतके चिंतवनमें अथवा अनित्यादि भावनाओंमें और तप, विनय और संयम इन सबमें तत्पर रहती है तथा ज्ञानाभ्यास शुभ योगमें युक्त रहती हैं ॥189॥ जिनके वस्त्र विकार रहित होते हैं, शरीरका आकार भी विकार रहित होता है, शरीर पसेव व मलकर लिप्त है तथा संस्कार (सजावट) रहित है। क्षमादि धर्म गुरु आदिकी सन्तान रूप कुल, यश, व्रत इनके समान जिनका शुद्ध आचरण है ऐसी आर्यिकाए होती हैं।
4. आर्यिका को न करने योग्य कार्य
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 193 रोदणण्हाण भोयणपयणं सुत्तं य छव्विहारंभे। विरदाण पादमक्खण धोवण गेयं च ण य कुज्जा ॥193॥
= आर्यिकाओंका अपनी वसतिकामें तथा अन्यके घरमें रोना नहीं चाहिए, बालकादिकोंको स्नान नहीं कराना। बालकादिकोंको जिमाना, रसोई करना, सूत कातना, सीना, असि, मसि आदि छः कर्म करना, संयमी जनोंके पैर धोना, साफ करना, राग पूर्वक गीत, इत्यादि क्रियाएँ नहीं करना चाहिए ॥193॥
5. आर्यिकाके विहार सम्बन्धी
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 192 ण य परगेहमकज्जे गच्छे कज्जे अवस्स गमणिज्जे। गणिणीमापुच्छित्ता संघाडेणेव गच्छेज्ज ॥192॥
= आर्यिकाओँको बिना प्रयोजन पराये स्थान पर नहीं जाना चाहिए। यदि अवश्य जाना हो तो भिक्षा आदि कालमें बड़ी आर्यिकाओंको पूछ कर अन्य आर्यिकाओंको साथ लेकर जाना चाहिए।
6. आर्यिकाके अन्य पुरुष व साधुके संग रहने सम्बन्धी - देखें संगित ।
• आर्यिकाको नमस्कार करने सम्बन्धी - देखें विनय - 3।