स्वस्तिक: Difference between revisions
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<p id="1">(1) तेरहवें स्वर्ग का विमान । <span class="GRef"> महापुराण 62.411 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1">(1) तेरहवें स्वर्ग का विमान । <span class="GRef"> महापुराण 62.411 </span></p> | ||
<p id="2">(2) लवणसमुद्र का स्वामी एक देव । कृष्ण ने तीन उपवास कर उसे अनुकूल किया था । <span class="GRef"> पांडवपुराण 21.120 -121 </span></p> | <p id="2">(2) लवणसमुद्र का स्वामी एक देव । कृष्ण ने तीन उपवास कर उसे अनुकूल किया था । <span class="GRef"> पांडवपुराण 21.120 -121 </span></p> | ||
<p id="3">(3) रुचकगिरि की दक्षिणदिशा का एक कूट-स्वहस्ती देव की आवासभूमि । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.702 </span></p> | <p id="3">(3) रुचकगिरि की दक्षिणदिशा का एक कूट-स्वहस्ती देव की आवासभूमि । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.702 </span></p> | ||
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<p id="5">(5) विद्युत्प्रभ गजदंत पर्वत का छठा कूट । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.222 </span></p> | <p id="5">(5) विद्युत्प्रभ गजदंत पर्वत का छठा कूट । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.222 </span></p> | ||
<p id="6">(6) कुंडलगिरि के मणि-भक्त का निवासी देव । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5. 393 </span></p> | <p id="6">(6) कुंडलगिरि के मणि-भक्त का निवासी देव । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5. 393 </span></p> | ||
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Revision as of 16:59, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
- विदेह क्षेत्र में स्थित भद्रशाल वन में एक दिग्गजेंद्र पर्वत-देखें लोक - 5.3।
- विद्युत्प्रभ गजदंतस्थ एक कूट-देखें लोक - 5.4।
- कुंडल पर्वतस्थ मणिप्रभ कूट का स्वामी नागेंद्र देव-देखें लोक - 5.12।
- रुचक पर्वतस्थ एक कूट-देखें लोक - 5.13।
पुराणकोष से
(1) तेरहवें स्वर्ग का विमान । महापुराण 62.411
(2) लवणसमुद्र का स्वामी एक देव । कृष्ण ने तीन उपवास कर उसे अनुकूल किया था । पांडवपुराण 21.120 -121
(3) रुचकगिरि की दक्षिणदिशा का एक कूट-स्वहस्ती देव की आवासभूमि । हरिवंशपुराण 5.702
(4) मेरु से दक्षिण की ओर सीतोदा नदी के पूर्व तट पर स्थित एक कूट । हरिवंशपुराण 5.206
(5) विद्युत्प्रभ गजदंत पर्वत का छठा कूट । हरिवंशपुराण 5.222
(6) कुंडलगिरि के मणि-भक्त का निवासी देव । हरिवंशपुराण 5. 393