भज ऋषिपति ऋषभेश: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 16: | Line 16: | ||
[[Category: देव भक्ति ]] | [[Category: देव भक्ति ]] | ||
[[Category:पंच कल्याणक भक्ति ]] | [[Category:पंच कल्याणक भक्ति ]] | ||
[[Category: तीर्थंकर भक्ति ]] |
Latest revision as of 11:10, 29 February 2008
भज ऋषिपति ऋषभेश, ताहि नित नमत अमर असुरा ।
मनमथ मथ दरसावन शिवपथ, वृषरथचक्रघुरा ।।भज. ।।
जा प्रभुगर्भ छमासपूर्व सुर, करी सुवर्णधरा ।
जन्मत सुरगिरधर सुरगणयुत, हरि पय-न्हवन करा।।१ ।।भज. ।।
नटत नृत्यकी विलय देख प्रभु, लहि विराग सु थिरा ।
तब हि देवऋषि आय नाय शिर, जिनपदपुष्प धरा।।२ ।।भज. ।।
केवल समय जास वच रविने, जगभ्रमतिमिरहरा ।
सुदृगबोधचारित्र पोतलहि, भवि भवसिंधुतरा।।३ ।।भज. ।।
योगसंहार निवार शेषविधि, निवसे वसुम धरा ।
`दौलत' जे जाको जस गावे, ते ह्वै अज अमरा।।४ ।।भज. ।।