सुनि सुजान! पाँचों रिपु वश करि: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: '''(राग कल्याण)''' <br> सुनि सुजान! पांचों रिपु वश करि, सुहित करन असमर्थ अवश करि ...) |
No edit summary |
||
Line 12: | Line 12: | ||
[[Category:Bhajan]] | [[Category:Bhajan]] | ||
[[Category:भूधरदासजी]] | [[Category:भूधरदासजी]] | ||
[[Category:आध्यात्मिक भक्ति]] |
Latest revision as of 01:22, 17 February 2008
(राग कल्याण)
सुनि सुजान! पांचों रिपु वश करि, सुहित करन असमर्थ अवश करि ।
जैसै जड़ खखार का कीड़ा, सुहित सम्हाल सकैं नहिं फंस करि ।।
पांचन को मुखिया मन चंचल, पहले ताहि पकर, रस कस करि ।
समझ देखि नायक के जीतै, जै है भाजि सहज सब लशकरि ।।१ ।।
इंद्रियलीन जनम सब खोयो, बाकी चल्यो जात है खस करि ।
`भूधर' सीख मान सतगुरुकी, इनसों प्रीति तोरि अब वश करि ।।२ ।।