सुनि सुजान! पाँचों रिपु वश करि
From जैनकोष
(राग कल्याण)
सुनि सुजान! पांचों रिपु वश करि, सुहित करन असमर्थ अवश करि ।
जैसै जड़ खखार का कीड़ा, सुहित सम्हाल सकैं नहिं फंस करि ।।
पांचन को मुखिया मन चंचल, पहले ताहि पकर, रस कस करि ।
समझ देखि नायक के जीतै, जै है भाजि सहज सब लशकरि ।।१ ।।
इंद्रियलीन जनम सब खोयो, बाकी चल्यो जात है खस करि ।
`भूधर' सीख मान सतगुरुकी, इनसों प्रीति तोरि अब वश करि ।।२ ।।