सुमति: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) अवसर्पिणी काल के सुषमा-दु:षमा चौथे काल में उत्पन्न पाँचवें तीर्थंकर । | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) अवसर्पिणी काल के सुषमा-दु:षमा चौथे काल में उत्पन्न पाँचवें तीर्थंकर । देखें [[ सुमतिनाथ ]]</p> | ||
<p id="2">(2) जंबूद्वीप की पुंडरीकिणी नगरी के वज्रमुष्टि और उसकी स्त्री सुभद्रा की पुत्री । इसने सुंदरी आर्यिका से प्रेरित होकर रत्नावली तप किया था जिसके प्रभाव से आयु के अंत में यह ब्रह्मेंद्र की इंद्राणी तथा स्वर्ग से चयकर जांबवती हुई । <span class="GRef"> महापुराण 71.366-369, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.50-53 </span></p> | <p id="2">(2) जंबूद्वीप की पुंडरीकिणी नगरी के वज्रमुष्टि और उसकी स्त्री सुभद्रा की पुत्री । इसने सुंदरी आर्यिका से प्रेरित होकर रत्नावली तप किया था जिसके प्रभाव से आयु के अंत में यह ब्रह्मेंद्र की इंद्राणी तथा स्वर्ग से चयकर जांबवती हुई । <span class="GRef"> महापुराण 71.366-369, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.50-53 </span></p> | ||
<p id="3">(3) धातकीखंडद्वीप क पूर्व विदेह क्षेत्र में रत्नसंचय नगर के राजा विश्वसेन का मंत्री । युद्ध में राजा के मरने पर इसने रानी को धर्म का उपदेश दिया था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.57-60 </span></p> | <p id="3">(3) धातकीखंडद्वीप क पूर्व विदेह क्षेत्र में रत्नसंचय नगर के राजा विश्वसेन का मंत्री । युद्ध में राजा के मरने पर इसने रानी को धर्म का उपदेश दिया था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.57-60 </span></p> |
Revision as of 11:36, 19 April 2023
सिद्धांतकोष से
पुराणकोष से
(1) अवसर्पिणी काल के सुषमा-दु:षमा चौथे काल में उत्पन्न पाँचवें तीर्थंकर । देखें सुमतिनाथ
(2) जंबूद्वीप की पुंडरीकिणी नगरी के वज्रमुष्टि और उसकी स्त्री सुभद्रा की पुत्री । इसने सुंदरी आर्यिका से प्रेरित होकर रत्नावली तप किया था जिसके प्रभाव से आयु के अंत में यह ब्रह्मेंद्र की इंद्राणी तथा स्वर्ग से चयकर जांबवती हुई । महापुराण 71.366-369, हरिवंशपुराण 60.50-53
(3) धातकीखंडद्वीप क पूर्व विदेह क्षेत्र में रत्नसंचय नगर के राजा विश्वसेन का मंत्री । युद्ध में राजा के मरने पर इसने रानी को धर्म का उपदेश दिया था । हरिवंशपुराण 60.57-60
(4) जंबूद्वीप के वत्सदेश की कौशांबी नगरी के राजा सुमुख का मंत्री । इसने राजा का वनमाला से मिलन कराया था । हरिवंशपुराण 14.1-2, 6, 53-95
(5) एक मुनि । इन्होंने वशिष्ठ मुनि को अपने पास छ: मास रखकर मुनि-चर्या सिखाई थी । हरिवंशपुराण 23.73
(6) राजा अकंपन की पुत्री सुलोचना की धाय । यह सुलोचना का लालन-पालन करती थी । महापुराण 43.124-127, 136-137, पांडवपुराण 3.26
(7) राजा अकंपन का एक मंत्री । इसने सुलोचना का परिचय स्वयंवर विधि से करने का राजा से आग्रह किया था । महापुराण 43. 127, 182, 194-197 पद्मपुराण 3. 32, पांडवपुराण 3.39-40
(8) भरतक्षेत्र के विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी में स्थित रथनूपुर नगर के राजा ज्वलनजटी का मंत्री । इसने राजा की पुत्री स्वयंप्रभा का विवाह करने के लिए राजा से स्वयंवर विधि का प्रस्ताव रखा था जिसे राजा ने सहर्ष स्वीकार किया था । महापुराण 62.25-30, 81-82, पांडवपुराण 4.11-13, 37-39
(9) पोदनपुर के राजा श्रीविजय का मंत्री । इसने राजा को मरने से बचाने के लिए पानी के भीतर पेटी में बंद रखने का उपाय बताया था । पांडवपुराण 4. 96-97, 114
(10) जंबूद्वीप में पूर्व विदेहक्षेत्र के पुष्कलावती देश की पुंडरीकिणी नगरी के राजा दृढ़रथ की रानी । वरसेन इसका पुत्र था । महापुराण 63.142-148, पांडवपुराण 5.53-57
(11) विदेहक्षेत्र में गंधिल देश के पाटलीग्राम के वणिक् नागदत्ता की स्त्री । इसके नंद, नंदिमित्र, नंदिषेण, वरसेन और जयसेन ये पाँच पुत्र और मदनकांता तथा श्रीकांता ये दो पुत्रियाँ थी । महापुराण 6.126-130
(12) विदेहक्षेत्र में गंधिल देश के पलाल पर्वत ग्राम के देवलिग्राम पटेल की स्त्री । धनश्री इसकी पुत्री थी । महापुराण 6.134-135
(13) तीर्थंकर पुष्पदंत का पुत्र । पुष्पदंत ने इसे ही राज्य भार सौंपकर दीक्षा ली थी । महापुराण 55.45
(14) अपराजित बलभद्र और रानी विजया की पुत्री । इसने एक देवी से अपने पूर्वभव सुनकर सुव्रता आर्यिका के पास सात सौ कन्याओं के साथ दीक्षा ले ली थी । आयु के अंत में यह आनत स्वर्ग के अनुदिश विभान में देव हुई । महापुराण 63. 2-4, 12-24
(15) कौशांबी नगरी का एक सेठ । इसकी स्त्री सुभद्रा थी । महापुराण 71. 437
(16) साकेत नगर के राजा दिव्यबल की रानी । हिरण्यवती इसकी पुत्री थी । महापुराण 59.208-209
(17) एक गणनी । धातकीखंडद्वीप के तिलकनगर की रानी सुवर्णतिलका ने इन्हीं से दीक्षा ली थी । महापुराण 63. 175
(18) रावण का सारथी । रावण ने अपना रथ इससे इंद्र के समक्ष ले जाने को कहा था । पद्मपुराण 12.305-306
(19) महेंद्र विद्याधर का मंत्री । इसने रावण को अंजना का पति होने योग्य नहीं बताया था । पद्मपुराण 15.25,31
(20) एक राजा । यह भरत के साथ दीक्षित हो गया था । पद्मपुराण 88.1-2, 4