सुमतिनाथ
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
सामान्य परिचय
तीर्थंकर क्रमांक | 5 |
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चिह्न | चकवा |
पिता | मेघरथ |
माता | मंगला |
वंश | इक्ष्वाकु |
उत्सेध (ऊँचाई) | 300 धनुष |
वर्ण | स्वर्ण |
आयु | 40 लाख पूर्व |
पूर्व भव सम्बंधित तथ्य
पूर्व मनुष्य भव | रतिषेण |
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पूर्व मनुष्य भव में क्या थे | मण्डलेश्वर |
पूर्व मनुष्य भव के पिता | विमलवाहन |
पूर्व मनुष्य भव का देश, नगर | धात.वि.पुण्डरीकिणी |
पूर्व भव की देव पर्याय | वैजयन्त |
गर्भ-जन्म कल्याणक सम्बंधित तथ्य
गर्भ-तिथि | श्रावण शुक्ल 2 |
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गर्भ-नक्षत्र | मघा |
जन्म तिथि | चैत्र शुक्ल 11 |
जन्म नगरी | अयोध्या |
जन्म नक्षत्र | मघा |
योग | पितृ |
दीक्षा कल्याणक सम्बंधित तथ्य
वैराग्य कारण | जातिस्मरण |
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दीक्षा तिथि | वैशाख शुक्ल 9 |
दीक्षा नक्षत्र | मघा |
दीक्षा काल | पूर्वाह्न |
दीक्षोपवास | तृतीय उप. |
दीक्षा वन | सहेतुक |
दीक्षा वृक्ष | प्रियङ्गु |
सह दीक्षित | 1000 |
ज्ञान कल्याणक सम्बंधित तथ्य
केवलज्ञान तिथि | पौष शुक्ल 15 |
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केवलज्ञान नक्षत्र | हस्त |
केवलोत्पत्ति काल | अपराह्न |
केवल स्थान | अयोध्या |
केवल वन | सहेतुक |
केवल वृक्ष | प्रियंगु |
निर्वाण कल्याणक सम्बंधित तथ्य
योग निवृत्ति काल | 1 मास पूर्व |
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निर्वाण तिथि | चैत्र शुक्ल 10 |
निर्वाण नक्षत्र | मघा |
निर्वाण काल | पूर्वाह्न |
निर्वाण क्षेत्र | सम्मेद |
समवशरण सम्बंधित तथ्य
समवसरण का विस्तार | 10 योजन |
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सह मुक्त | 1000 |
पूर्वधारी | 2400 |
शिक्षक | 254350 |
अवधिज्ञानी | 11000 |
केवली | 13000 |
विक्रियाधारी | 18400 |
मन:पर्ययज्ञानी | 10400 |
वादी | 10450 |
सर्व ऋषि संख्या | 320000 |
गणधर संख्या | 116 |
मुख्य गणधर | वज्र |
आर्यिका संख्या | 330000 |
मुख्य आर्यिका | अनन्ता |
श्रावक संख्या | 300000 |
मुख्य श्रोता | मित्रवीर्य |
श्राविका संख्या | 500000 |
यक्ष | तुम्बुरव |
यक्षिणी | वज्राङ्कुशा |
आयु विभाग
आयु | 40 लाख पूर्व |
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कुमारकाल | 10 लाख पूर्व |
विशेषता | मण्डलीक |
राज्यकाल | 29 लाख पूर्व+12 पूर्वांग |
छद्मस्थ काल | 20 वर्ष |
केवलिकाल | 1 लाख पू..–(12 पूर्वांग 20 वर्ष) |
तीर्थ संबंधी तथ्य
जन्मान्तरालकाल | 9 लाख करोड़ सागर +10 लाख पू. |
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केवलोत्पत्ति अन्तराल | 90,000 करोड़ सागर +3 पूर्वांग 8399980 1/2 वर्ष |
निर्वाण अन्तराल | 90,000 करोड़ सागर |
तीर्थकाल | 90,000 करोड़ सागर +4 पूर्वांग |
तीर्थ व्युच्छित्ति | ❌ |
शासन काल में हुए अन्य शलाका पुरुष | |
चक्रवर्ती | ❌ |
बलदेव | ❌ |
नारायण | ❌ |
प्रतिनारायण | ❌ |
रुद्र | ❌ |
- पूर्व भव नं.2 में धातकी खंड में पुष्कलावती देश का राजा था। पूर्व भव में वैजयंत विमान में अहमिंद्र हुआ। वर्तमान भव में पंचम तीर्थंकर थे ( महापुराण/51/2-19 )। विशेष परिचय-देखें तीर्थंकर - 5।
- आप मल्लवादी नं.1 के शिष्य थे। समय-वि.439 (ई.383), ( सिद्धि विनिश्चय/ प्र.34 पं.महेंद्र)।
पुराणकोष से
(1) अवसर्पिणी काल के सुषमा-दु:षमा चौथे काल में उत्पन्न पाँचवें तीर्थंकर । ये जंबूद्वीप संबंधी भरतक्षेत्र की अयोध्या नगरी के शाक्य राजा मेघरथ और रानी मंगला के पुत्र थे । ये श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि और मघा नक्षत्र में सोलह स्वप्नपूर्वक रानी मंगला के गर्भ में आये थे तथा चैत्र मास के शुक्लपक्ष की एकादशी के दिन इनका जन्म हुआ था । इंद्र ने जन्मोत्सव मनाकर इनका नाम ‘‘सुमति’’ रखा था । इनकी आयु चालीस लाख पूर्व की थी । शरीर तीन सौ धनुष ऊंचा था तथा कांति स्वर्ण के समान थी । कुमारकाल के दस लाख पूर्व वर्ष बाद इन्हें राज्य प्राप्त हुआ था । राज्य करते हुए उंतीस लाख पूर्व और बारह पूर्वांग वर्ष बीत जाने पर इन्हें वैराग्य उत्पन्न हुआ । सारस्वत देव की स्तुति करने के पश्चात् ये अभय नामक शिविका में सहेतुक वन ले जाये गये थे । वहाँ इन्होंने वैशाख सुदी नवमी के दिन मघा नक्षत्र में एक हजार राजाओं के साथ वेला का नियम लेकर दीक्षा ली थी । सौमनस नगर के राजा पद्मराज ने इनकी पारणा कराई थी । छद्मस्थ अवस्था में बीस वर्ष बीतने पर सहेतुक वन में प्रियंगुवृक्ष के नीचे इन्होंने दो दिन का उपवास धारण करके योग धारण किया था । चैत्र शुक्ल एकादशी के दिन सूर्यास्त के समय इन्हें केवलज्ञान हुआ । केवली होने पर इनके संघ में अमर आदि एक सौ सोलह गणधर थे । मुनियों में दो हजार चार सौ पूर्वधारी दो लाख चौवन हजार तीन सौ पचास शिक्षक, ग्यारह हजार अवधिज्ञानी, तेरह हजार केवलज्ञानी, आठ हजार चार सौ विक्रियाऋद्धिधारी, दस हजार चार सौ पचास वादी कुल तीन लाख बीस हजार मूनि, अनंतमती आदि तीन लाख तीस हजार आर्यिकाएँ, तीन लाख श्रावक, पांच लाख श्राविकाएँ, असंख्यात देवदेवियों और संस्थान तिर्यंच थे । अंत में एक मास की आयु शेष रहने पर ये सम्मेदगिरि पर एक हजार मुनियों के साथ प्रतिमायोग में स्थिर हुए तथा चैत्र शुक्ल एकादशी के दिन मघा नक्षत्र में इन्होंने मोक्ष प्राप्त किया । महापुराण 51.19-26, 55. 68-85, हरिवंशपुराण - 1.7, 13, 31, 60.156-186, 341-349, वीर वर्द्धमान चरित्र 18.87, 101-105