पद्मोत्तर: Difference between revisions
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<p id="3">(3) मेरु पर्वत से पूर्व की ओर सीता नदी के उत्तरी तट पर स्थित कूट । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.205 </span></p> | <p id="3">(3) मेरु पर्वत से पूर्व की ओर सीता नदी के उत्तरी तट पर स्थित कूट । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.205 </span></p> | ||
<p id="4">(4) वत्सकावती देश के रत्नपुर नगर के राजा । ये युगंधर जिनेश के उपासक थे । घनमित्र इनका पुत्र था । पुत्र को राज्य देकर आत्मशुद्धि के लिए ये अन्य अनेक राजाओं के साथ दीक्षित हो गये थे । ग्यारह अंगों का अध्ययन करके इन्होंने तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया था । आयु के अंत में समाधिपूर्वक मरण कर ये महाशुक्र स्वर्ग में महाशुक्र नाम के इंद्र हुए । वहाँ से च्युत होकर ये तीर्थंकर वासुपूज्य हुए । <span class="GRef"> महापुराण 58.2, 7, 11-13, 20, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 153 </span></p> | <p id="4">(4) वत्सकावती देश के रत्नपुर नगर के राजा । ये युगंधर जिनेश के उपासक थे । घनमित्र इनका पुत्र था । पुत्र को राज्य देकर आत्मशुद्धि के लिए ये अन्य अनेक राजाओं के साथ दीक्षित हो गये थे । ग्यारह अंगों का अध्ययन करके इन्होंने तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया था । आयु के अंत में समाधिपूर्वक मरण कर ये महाशुक्र स्वर्ग में महाशुक्र नाम के इंद्र हुए । वहाँ से च्युत होकर ये तीर्थंकर वासुपूज्य हुए । <span class="GRef"> महापुराण 58.2, 7, 11-13, 20, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 153 </span></p> | ||
<p id="5">(5) तीर्थंकर श्रेयांस के पूर्वजन्म का नाम । <span class="GRef"> पद्मपुराण 20.20-24 </span></p> | <p id="5">(5) तीर्थंकर श्रेयांस के पूर्वजन्म का नाम । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#20|पद्मपुराण - 20.20-24]] </span></p> | ||
<p id="6">(6) रत्नपुर नगर के विद्याधर पुष्पोत्तर का पुत्र । <span class="GRef"> पद्मपुराण 6.7-9 </span></p> | <p id="6">(6) रत्नपुर नगर के विद्याधर पुष्पोत्तर का पुत्र । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_6#7|पद्मपुराण - 6.7-9]] </span></p> | ||
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Revision as of 22:21, 17 November 2023
सिद्धांतकोष से
- भद्रशाल वनस्थ एक दिग्गजेंद्र पर्वत - देखें देखें द्वीप_पर्वतों_आदि_के_नाम_रस_आदि-5.3.6;
- कुंडल पर्वतस्थ रजतप्रभ कूट का स्वामी नागेंद्रदेव - देखें द्वीप_पर्वतों_आदि_के_नाम_रस_आदि-5.12;
- रुचक पर्वत के नंद्यावर्त कूट पर रहनेवाला देव - देखें द्वीप_पर्वतों_आदि_के_नाम_रस_आदि-5.13;
- महापुराण/58/ श्लोक पुष्करार्धद्वीप के वत्सकावती देश में रत्नपुर नगर का राजा था (2)। दीक्षित होकर 11 अंगों का पारगामी हो गया। तीर्थंकर प्रकृति का बंध कर आयु के अंत में संन्यास पूर्वक मरण कर महाशुक्र स्वर्ग में उत्पनन हुआ (11-13)। यह वासुपूज्य भगवान् का दूसरा पूर्वभव है - देखें वासुपूज्य ।
पुराणकोष से
(1) कुंडल पर्वतस्थ रजतप्रभ कूट का स्वामी देव । हरिवंशपुराण 5.691
(2) रुचक पर्वतस्थ नंद्यावर्तकूट का निवासी देव । हरिवंशपुराण 5.702
(3) मेरु पर्वत से पूर्व की ओर सीता नदी के उत्तरी तट पर स्थित कूट । हरिवंशपुराण 5.205
(4) वत्सकावती देश के रत्नपुर नगर के राजा । ये युगंधर जिनेश के उपासक थे । घनमित्र इनका पुत्र था । पुत्र को राज्य देकर आत्मशुद्धि के लिए ये अन्य अनेक राजाओं के साथ दीक्षित हो गये थे । ग्यारह अंगों का अध्ययन करके इन्होंने तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया था । आयु के अंत में समाधिपूर्वक मरण कर ये महाशुक्र स्वर्ग में महाशुक्र नाम के इंद्र हुए । वहाँ से च्युत होकर ये तीर्थंकर वासुपूज्य हुए । महापुराण 58.2, 7, 11-13, 20, हरिवंशपुराण 60. 153
(5) तीर्थंकर श्रेयांस के पूर्वजन्म का नाम । पद्मपुराण - 20.20-24
(6) रत्नपुर नगर के विद्याधर पुष्पोत्तर का पुत्र । पद्मपुराण - 6.7-9