सागरसेना: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<div class="HindiText"> <p> विदेहक्षेत्र की पुंडरीकिणी नगरी के सेठ सागरसेन की छोटी बहिन । इसकी 2 संताने थी― एक पुत्र और एक पुत्री । पुत्र वैश्रवणदत्त और पुत्री वैश्रवणदत्ता थी । <span class="GRef"> महापुराण 47. 191, 196-197 </span><br> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> विदेहक्षेत्र की पुंडरीकिणी नगरी के सेठ सागरसेन की छोटी बहिन । इसकी 2 संताने थी― एक पुत्र और एक पुत्री । पुत्र वैश्रवणदत्त और पुत्री वैश्रवणदत्ता थी । <span class="GRef"> महापुराण 47. 191, 196-197 </span><br> | ||
सागरावर्त― देवों से रक्षित एक धनुष । चंद्रगति विद्याघर ने लक्ष्मण को यह धनुष चढ़ाकर अपनी शक्ति बताने के लिए कहा था । लक्ष्मण ने भी इस धनुष को चढ़ाकर उसका मानभंग किया था । देवों ने पुष्पवृष्टि की थी । इसी शक्ति को देखकर चंद्रवर्द्धन विद्याधर ने लक्ष्मण को अपनी अठारह पुत्रियाँ दी थी । अंत में यह धनुष लक्ष्मण ने अपने भाई शत्रुघ्न को दे दिया था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_28#169|पद्मपुराण - 28.169-170]], 247-250, 89.35 </span></p> | सागरावर्त― देवों से रक्षित एक धनुष । चंद्रगति विद्याघर ने लक्ष्मण को यह धनुष चढ़ाकर अपनी शक्ति बताने के लिए कहा था । लक्ष्मण ने भी इस धनुष को चढ़ाकर उसका मानभंग किया था । देवों ने पुष्पवृष्टि की थी । इसी शक्ति को देखकर चंद्रवर्द्धन विद्याधर ने लक्ष्मण को अपनी अठारह पुत्रियाँ दी थी । अंत में यह धनुष लक्ष्मण ने अपने भाई शत्रुघ्न को दे दिया था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_28#169|पद्मपुराण - 28.169-170]], 247-250, 89.35 </span></p> | ||
</div> | </div> |
Latest revision as of 15:30, 27 November 2023
विदेहक्षेत्र की पुंडरीकिणी नगरी के सेठ सागरसेन की छोटी बहिन । इसकी 2 संताने थी― एक पुत्र और एक पुत्री । पुत्र वैश्रवणदत्त और पुत्री वैश्रवणदत्ता थी । महापुराण 47. 191, 196-197
सागरावर्त― देवों से रक्षित एक धनुष । चंद्रगति विद्याघर ने लक्ष्मण को यह धनुष चढ़ाकर अपनी शक्ति बताने के लिए कहा था । लक्ष्मण ने भी इस धनुष को चढ़ाकर उसका मानभंग किया था । देवों ने पुष्पवृष्टि की थी । इसी शक्ति को देखकर चंद्रवर्द्धन विद्याधर ने लक्ष्मण को अपनी अठारह पुत्रियाँ दी थी । अंत में यह धनुष लक्ष्मण ने अपने भाई शत्रुघ्न को दे दिया था । पद्मपुराण - 28.169-170, 247-250, 89.35