मोक्षमार्ग: Difference between revisions
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<p class="HindiText">सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व | == सिद्धांतकोष से == | ||
<p class="HindiText">सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्र, इन तीनों को रत्नत्रय कहते हैं। यह ही मोक्षमार्ग है। परन्तु इन तीनों में से कोई एक या दो आदि पृथक्-पृथक् रहकर मोक्ष के कारण नहीं हैं, बल्कि समुदित रूप से एकरस होकर ही ये तीनों युगपत् मोक्षमार्ग हैं। क्योंकि किसी वस्तु को जानकर उसकी श्रद्धा या रुचि हो जाने पर उसे प्राप्त करने के प्रति आचरण होना भी स्वभाविक है। आचरण के बिना व ज्ञान, रुचि व श्रद्धा यथार्थ नहीं कहे जा सकते। भले ही व्यवहार से इन्हें तीन कह लो पर वास्तव में यह एक अखण्ड चेतन के ही सामान्य व विशेष अंश हैं। यहाँ भेद रत्नत्रयरूप व्यवहार मार्ग को अभेद रत्नत्रयरूप निश्चयमार्ग का साधन कहना भी ठीक ही है, क्योंकि कोई भी साधक अभ्यास दशा में पहले सविकल्प रहकर ही आगे जाकर निर्विकल्पता को प्राप्त करता है। <br /> | |||
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<li class="HindiText"> सयोगि गुणस्थानों में रत्नत्रय की पूर्णता हो जाने पर भी मोक्ष क्यों नहीं होता ? − | <li class="HindiText"> सयोगि गुणस्थानों में रत्नत्रय की पूर्णता हो जाने पर भी मोक्ष क्यों नहीं होता ? − देखें [[ केवली#2.2 | केवली - 2.2]]। <br /> | ||
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<li class="HindiText"> इन तीनों में सम्यग्दर्शन प्रधान है। | <li class="HindiText"> इन तीनों में सम्यग्दर्शन प्रधान है। −देखें [[ सम्यग्दर्शन#I.5 | सम्यग्दर्शन - I.5]]। <br /> | ||
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<li class="HindiText"> मोक्षमार्ग में योग्य गति, लिंग, चारित्र आदि का | <li class="HindiText"> मोक्षमार्ग में योग्य गति, लिंग, चारित्र आदि का निर्देश।−देखें [[ मोक्ष#4 | मोक्ष - 4]]। <br /> | ||
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<li class="HindiText"> मोक्षमार्ग में अधिक ज्ञान की आवश्यकता | <li class="HindiText"> मोक्षमार्ग में अधिक ज्ञान की आवश्यकता नहीं।−देखें [[ ध्याता#1 | ध्याता - 1]]। <br /> | ||
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<li class="HindiText"> सविकल्प व निर्विकल्प निश्चय मोक्षमार्ग | <li class="HindiText"> सविकल्प व निर्विकल्प निश्चय मोक्षमार्ग निर्देश।−देखें [[ मोक्षमार्ग#4.6 | मोक्षमार्ग - 4.6]]। <br /> | ||
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<li><span class="HindiText">[[ दर्शन ज्ञान चारित्र में | <li><span class="HindiText">[[ दर्शन ज्ञान चारित्र में कथंचित् एकत्व ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText">[[दर्शन ज्ञान चारित्र में | <li class="HindiText">[[दर्शन ज्ञान चारित्र में कथंचित् एकत्व #3.1| तीनों वास्तव में एक आत्मा ही हैं। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> ज्ञानमात्र ही मोक्षमार्ग नहीं है। | <li class="HindiText"> ज्ञानमात्र ही मोक्षमार्ग नहीं है। −देखें [[ मोक्षमार्ग#1.2 | मोक्षमार्ग - 1.2]]। <br /> | ||
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<li class="HindiText"> सम्यग्दर्शन, ज्ञान व चारित्र में | <li class="HindiText"> सम्यग्दर्शन, ज्ञान व चारित्र में अन्तर।−देखें [[ सम्यग्दर्शन#I.4 | सम्यग्दर्शन - I.4]]। <br /> | ||
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<li class="HindiText">[[दर्शन ज्ञान चारित्र में | <li class="HindiText">[[दर्शन ज्ञान चारित्र में कथंचित् एकत्व #3.4| तीनों के भेद व अभेद का समन्वय। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText">[[दर्शन ज्ञान चारित्र में | <li class="HindiText">[[दर्शन ज्ञान चारित्र में कथंचित् एकत्व #3.6| दर्शनादि तीनों चैतन्य की ही सामान्य-विशेष परिणति है। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText">[[निश्चय व्यवहार मार्ग की | <li class="HindiText">[[निश्चय व्यवहार मार्ग की कथंचित् मुख्यता गौणता व समन्वय #4.1| निश्चयमार्ग की कथंचित् प्रधानता। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText">[[निश्चय व्यवहार मार्ग की | <li class="HindiText">[[निश्चय व्यवहार मार्ग की कथंचित् मुख्यता गौणता व समन्वय #4.2| निश्चय ही एक मार्ग है, अन्य नहीं। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText">[[निश्चय व्यवहार मार्ग की | <li class="HindiText">[[निश्चय व्यवहार मार्ग की कथंचित् मुख्यता गौणता व समन्वय #4.3| केवल उसका प्ररूपण ही अनेक प्रकार से किया जाता है। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> [[निश्चय व्यवहार मार्ग की | <li class="HindiText"> [[निश्चय व्यवहार मार्ग की कथंचित् मुख्यता गौणता व समन्वय #4.4|व्यवहार मार्ग की कथंचित् गौणता। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText">[[निश्चय व्यवहार मार्ग की | <li class="HindiText">[[निश्चय व्यवहार मार्ग की कथंचित् मुख्यता गौणता व समन्वय #4.6| दोनों के साध्यसाधन भाव की सिद्धि। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> मोक्षमार्ग में अभ्यास का महत्त्व।−देखें | <li class="HindiText"> मोक्षमार्ग में अभ्यास का महत्त्व।−देखें [[ अभ्यास ]]। <br /> | ||
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<li class="HindiText"> मोक्षमार्ग में प्रयोजनीय पुरुषार्थ। | <li class="HindiText"> मोक्षमार्ग में प्रयोजनीय पुरुषार्थ। −देखें [[ पुरुषार्थ#6 | पुरुषार्थ - 6]]। <br /> | ||
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<li class="HindiText"> साधु व श्रावक के मोक्षमार्ग में | <li class="HindiText"> साधु व श्रावक के मोक्षमार्ग में अन्तर।−देखें [[ अनुभव#5 | अनुभव - 5]]। <br /> | ||
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<li class="HindiText"> परस्पर सापेक्ष ही मोक्षमार्ग कार्यकारी | <li class="HindiText"> परस्पर सापेक्ष ही मोक्षमार्ग कार्यकारी है।−देखें [[ धर्म#6 | धर्म - 6]]। <br /> | ||
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<li class="HindiText"> निश्चय व व्यवहार मोक्षमार्ग में मोक्ष व संसार का | <li class="HindiText"> निश्चय व व्यवहार मोक्षमार्ग में मोक्ष व संसार का कारणपना।−देखें [[ धर्म#7 | धर्म - 7]]। <br /> | ||
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<li class="HindiText"> शुभ व शुद्धोपयोग की अपेक्षा निश्चय व व्यवहार मोक्षमार्ग।−देखें | <li class="HindiText"> शुभ व शुद्धोपयोग की अपेक्षा निश्चय व व्यवहार मोक्षमार्ग।−देखें [[ धर्म ]]। <br /> | ||
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<li class="HindiText"> अन्ध | <li class="HindiText"> अन्ध पङ्गु के दृष्टान्त से तीनों का समन्वय।−देखें [[ मोक्षमार्ग#1.2. | मोक्षमार्ग - 1.2.]]रा. वा.। </li> | ||
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== पुराणकोष से == | |||
<p> सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र इन तीनों से समन्वित मुक्ति मार्ग । <span class="GRef"> महापुराण 24.116, 120, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 105.210, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 47.10-11 </span></p> | |||
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Revision as of 21:46, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्र, इन तीनों को रत्नत्रय कहते हैं। यह ही मोक्षमार्ग है। परन्तु इन तीनों में से कोई एक या दो आदि पृथक्-पृथक् रहकर मोक्ष के कारण नहीं हैं, बल्कि समुदित रूप से एकरस होकर ही ये तीनों युगपत् मोक्षमार्ग हैं। क्योंकि किसी वस्तु को जानकर उसकी श्रद्धा या रुचि हो जाने पर उसे प्राप्त करने के प्रति आचरण होना भी स्वभाविक है। आचरण के बिना व ज्ञान, रुचि व श्रद्धा यथार्थ नहीं कहे जा सकते। भले ही व्यवहार से इन्हें तीन कह लो पर वास्तव में यह एक अखण्ड चेतन के ही सामान्य व विशेष अंश हैं। यहाँ भेद रत्नत्रयरूप व्यवहार मार्ग को अभेद रत्नत्रयरूप निश्चयमार्ग का साधन कहना भी ठीक ही है, क्योंकि कोई भी साधक अभ्यास दशा में पहले सविकल्प रहकर ही आगे जाकर निर्विकल्पता को प्राप्त करता है।
- मोक्षमार्ग सामान्य निर्देश
- मोक्षमार्ग का लक्षण।
- तीनों की युगपतता ही मोक्षमार्ग है।
- सामायिक संयम व ज्ञानमात्र से मुक्ति कहने पर भी तीनों का ग्रहण हो जाता है।
- वास्तव में मार्ग तीन नहीं एक है।
- युगपत् होते हुए भी तीनों का स्वरूप भिन्न है।
- तीनों की पूर्णता युगपत् नहीं होती।
- सयोगि गुणस्थानों में रत्नत्रय की पूर्णता हो जाने पर भी मोक्ष क्यों नहीं होता ? − देखें केवली - 2.2।
- इन तीनों में सम्यग्दर्शन प्रधान है। −देखें सम्यग्दर्शन - I.5।
- मोक्षमार्ग में योग्य गति, लिंग, चारित्र आदि का निर्देश।−देखें मोक्ष - 4।
- मोक्षमार्ग में अधिक ज्ञान की आवश्यकता नहीं।−देखें ध्याता - 1।
- मोक्षमार्ग का लक्षण।
- निश्चय व्यवहार मोक्षमार्ग निर्देश
- सविकल्प व निर्विकल्प निश्चय मोक्षमार्ग निर्देश।−देखें मोक्षमार्ग - 4.6।
- दर्शन ज्ञान चारित्र में कथंचित् एकत्व
- ज्ञानमात्र ही मोक्षमार्ग नहीं है। −देखें मोक्षमार्ग - 1.2।
- सम्यग्दर्शन, ज्ञान व चारित्र में अन्तर।−देखें सम्यग्दर्शन - I.4।
- ज्ञानमात्र ही मोक्षमार्ग नहीं है। −देखें मोक्षमार्ग - 1.2।
- निश्चय व्यवहार मार्ग की कथंचित् मुख्यता गौणता व समन्वय
- निश्चयमार्ग की कथंचित् प्रधानता।
- निश्चय ही एक मार्ग है, अन्य नहीं।
- केवल उसका प्ररूपण ही अनेक प्रकार से किया जाता है।
- व्यवहार मार्ग की कथंचित् गौणता।
- व्यवहारमार्ग निश्चय का साधन है।
- दोनों के साध्यसाधन भाव की सिद्धि।
- मोक्षमार्ग में अभ्यास का महत्त्व।−देखें अभ्यास ।
- मोक्षमार्ग में प्रयोजनीय पुरुषार्थ। −देखें पुरुषार्थ - 6।
- साधु व श्रावक के मोक्षमार्ग में अन्तर।−देखें अनुभव - 5।
- परस्पर सापेक्ष ही मोक्षमार्ग कार्यकारी है।−देखें धर्म - 6।
- निश्चय व व्यवहार मोक्षमार्ग में मोक्ष व संसार का कारणपना।−देखें धर्म - 7।
- शुभ व शुद्धोपयोग की अपेक्षा निश्चय व व्यवहार मोक्षमार्ग।−देखें धर्म ।
- अन्ध पङ्गु के दृष्टान्त से तीनों का समन्वय।−देखें मोक्षमार्ग - 1.2.रा. वा.।
पुराणकोष से
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र इन तीनों से समन्वित मुक्ति मार्ग । महापुराण 24.116, 120, पद्मपुराण 105.210, हरिवंशपुराण 47.10-11